अमर उजाला संवाद: बचपन में लकड़ी के धनुष से खेलते थे, तब पता न था इसकी प्रतियोगिताएं भी होती हैं- शीतल

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Amar Ujala Samvad jammu kashmir
– फोटो : संवाद

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जन्म से ही दोनों बाजू नहीं होने के चलते पैरों को ही अपने हाथ बनाने वाली शीतल देवी ने जिंदगी की हर कठिनाई को वरदान समझकर अपनाया। बचपन में यह भी कहा गया कि इसके तो दोनों हाथ नहीं हैं, ये कुछ नहीं कर पाएगी, लेकिन उसी शीतल ने अपने जज्बे से दुनिया को अपनी ओर झुका लिया। 

एक समय वह था जब माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड अकादमी में उनसे धनुष नहीं संभाला जा रहा था। शीतल टूट सी गई थीं। उनके मन में यही था कि, मुझसे नहीं हो पाएगा, लेकिन गुरु कुलदीप वेदवान, अभिलाषा चौधरी के शब्दों उनमें ऐसी प्रेरणा भरी की उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दोनों ने शीतल से यही कहा कि हिम्मत नहीं हारनी है। 

अमर उजाला के संवाद कार्यक्रम में 16 वर्षीय इस लेडी अर्जुन ने यहां तक कह डाला कि मेरी जिंदगी में अब तक बेहद अच्छे लोग आए हैं। मुझे लगता है मेरे जैसा किस्मत वाला दुनिया में दूसरा और कोई नहीं है। लोगों ने मुझे बहुत हौसला दिया है।

पहला सपना टीचर बनना था

शीतल बताती हैं कि उन्हें बचपन में स्कूल जाना बहुत पसंद था और खेलना भी अच्छा लगता था। उनका पहला सपना टीचर बनना था, लेकिन यह सपना बाद में बदल गया और वह तीरंदाज बन गईं। जब वह तीरंदाजी अकादमी में गईं तो शुरुआत में धनुष को नहीं पकड़ पाती थीं। दूसरों का निशाना लगता था और उनका निशाना चूक जाता था। उस दौरान दिमाग में यही चलता रहता था कि मैं कर भी पाऊंगी। तब कोच कुलदीप ने कहा कि तुम कर पाओगी, लेकिन हिम्मत नहीं हारनी है। एनजीओ में काम करने वाली बंगलूरू की प्रीति ने शीतल की बहुत मदद की। उन्होंने उन्हें खेलों की ओर प्रेरित किया और प्रोस्थेटिक भी लगवाए। उस दौरान शीतल को लगा कि अब जिंदगी आसान हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रोस्थेटिक उन्हें भारी लगने लगे और उन्होंने इसे उतारकर रख दिया।

बचपन में पैरों से चलाती थीं धनुष

शीतल बताती हैं कि उनका बचपन से लिखना, खेलना, पढऩा और यहां पेड़ चढ़ना, सब पैरों से होता आया है। पैर ही उनके हाथ हैं। पहले वह किश्तवाड़ में पड़ते गांव लोईधार में दोस्तों के साथ फुटबाल खेलती थी और लकड़ी का धनुष बनाकर उसे पैरों से चलाती थीं, उन्हें नहीं मालूम था कि बाद में यही खेल उनकी जिंदगी बन जाएगा।

लगता है स्टार बन गई हूं

पहले उनके तीर निशाने पर नहीं लगे, लेकिन बाद में जब तीर निशाने पर लगने लगे तो उनमें हौसला आया। उनका आत्मविश्वास राष्ट्रीय चैंपियनशिप में रजत जीतकर बढ़ा। शीतल कहती हैं कि यहां से मुझे लगा कि उन्हें और मेहनत करनी है। उसके बाद तो इतने मेडल आ गए हैं कि उन्हें लगने लगा है कि वह अब स्टार बन गई हैं।

माता-पिता ने कभी नहीं सोचा बेटी कुछ नहीं कर पाएगी

शीतल के पिता मान सिंह और मां शक्ति देवी भी कार्यक्रम में मौजूूद थे। शीतल बताती हैं कि उनके मम्मी पापा ने कभी यह नहीं सोचा कि उनकी बेटी कुछ नहीं कर पाएगी। आज वे बहुत खुश हैं। वे उन्हें मेडल जीतकर देखकर खुश होते हैं। लोग कहते थे कि शीतल के दोनों हाथ नहीं हैं ये कुछ नहीं कर पाएगी, लेकिन लोगों को ये नहीं पता है अगर किसी को कुछ समस्या है तो उसमें कुछ कर पाने का भी हौसला होता है। शीतल कहती हैं कि मेरे जैसे बहुत भाई बहन होंगे। अगर वे स्पोट्र्स अपनाएं तो वे भी स्टार बन जाएंगे। बस हिम्मत नहीं हारनी है और मां-बाप का साथ चाहिए।

 

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