अश्विन नाट्य महोत्सव: 30 दिन रिहर्सल और ढाई घंटे में मेकअप, ऐसे नाटक की प्रस्तुति देते हैं कलाकार

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Ashwin Natya Mahotsav: 30 days of rehearsal and make-up in two and a half hours, artists present such plays

नागरी नाटक मंडली में शिलप्प दिकारम नाटक का मंचन करते कलाकार
– फोटो : उज्जवल गुप्ता

विस्तार


अश्विन नाट्य महोत्सव में शुक्रवार को नागरी नाटक मंडली में तमिल संगमम् साहित्य के पांच ग्रंथों में एक शिल्पदिकारम् (नूपुर की कथा) नाटक का भावपूर्ण मंचन हुआ। भरतनाट्यम् शैली में कलाकारों ने अपने उम्दा अभिनय से नाटक के मार्मिक भावों को दर्शकों के मानस पटल पर उतारा। उन्होंने सौम्यता को धारण करने वाली नारी के पतिव्रता शक्ति को भी उत्कृष्टता प्रदान की।

इलांगो अडिगल द्वारा रचित शिलप्पदिकारम् को नाट्य शास्त्र में कलाकारों ने रूपांतरित किया। प्रसंग के अनुसार नुपूर कथा की नायिका कन्नगी और कोवलन सुखी दाम्पत्य जीवन जी रही है। तभी गणिका माधवी कोवलन के प्रेमपाश में बंध जाती है। इसके बाद से कोवलन को कन्नगी हृदय का रुदन सुनाई नहीं देती है। तभी एक घटना कोवलन का हृदय परिवर्तन कर देता है। फिर कन्नगी और कोवलन एक हो जाते हैं। कन्नगी कोवलन को व्यापार करने के लिए अपने नुपूर देती है। वह उसे बेचने के लिए स्वर्णकार के पास जाता है।

मगर उस नुपूर को चोरी का बताकर उसे चोर घोषित कर दिया जाता है। मदुरैई के राजा दूसरे के कहने पर मृत्यु दंड दे देता है। यह सुुनकर कन्नगी क्रोध में आ जाती है और राजा की सभा में पहंचती है। उसके साक्षात चंडी का रूप देख सभी डर जाते हैं। अपने पति के निर्दोष होने के सारे प्रमाण देती है। राजा इस कृत्य से दुखी होकर अपना प्राण त्याग देता है। कन्नगी के क्रोध से पूरा मदुरै नगर जलकर राख हो जाता है। नाटक की निर्देशक दिव्या श्रीवास्तव का था। प्रमुख पात्रों में तुषार वर्मा, अमित कुमार गुप्ता, प्रार्थना सिंह, बृजमोहन यादव, सौरभ त्रिपाठी, कशिश शाह आदि शामिल रहे। संचालन डॉ. आशुतोष चतुर्वेदी ने किया।

30 दिन रिहर्सल व ढाई घंटे में मेकअप कर किया मंचित

निर्देशक दिव्या श्रीवास्तव ने बताया कि शिल्पदिकारम् नाट्य रुपांतरित कर मंचित करने में कलाकारों ने 30 दिनों तक रिहर्सल किया। वह प्रति दिन दो से तीन घंटे अभ्यास करते थे। नाटक प्रस्तुति करने के पहले उन्हें ढाई घंटे मेकअप करने में लगा। उन्होंने बताया कि तमिल संगम साहित्य पर आधारित होने के कारण उस थीम को नाटक के रूप में प्रदर्शित करने में समय लगा।

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