कश्मीरियत जिंदा है: गांदरबल में मंदिरों की साफ-सफाई कर रहे मुस्लिम युवक, बोले- पंडित हमारे भाई हैं

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गांदरबल में मंदिर की सफाई करते स्थानीय लोग

गांदरबल में मंदिर की सफाई करते स्थानीय लोग
– फोटो : संवाद

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बीते तीन दशकों से ज्यादा समय से आतंकवाद का दंश झेल रही कश्मीर घाटी में कश्मीरियत को जिंदा रखने की कवायद भी जारी है। पूरी घाटी से समय -समय पर ऐसी सकारात्मक खबरें आती रहती हैं जो इस अहसास को मजबूती प्रदान करती हैं कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले में कुछ स्थनीय मुस्लिम युवाओं ने यहां के मंदिरों की साफ-सफाई का जिम्मा उठाया है। ये कहते हैं कि कश्मीरी पंडित हमारे भाई हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि उनकी गैर मौजूदगी में इन मंदिरों का ध्यान रखा जाए।

‘ग्रीन कश्मीर रेवोलुशन’ संस्था के संस्थापक डॉ. तौसीफ अहमद बताते हैं कि हमारी टीम की ओर से मंदिरों की साफ-सफाई का अभियान शुरू किया गया है। हमारा संदेश यही है कि कश्मीरी अवाम अपनी मेहमान नवाजी के लिए जानी जाती है पर अफसोस इस बात का है कि कुछ लोग इसे बदनाम कर रहे हैं। अलग-अलग मंचों पर कहा जाता है कि यहां मंदिर सुरक्षित नहीं हैं, पंडित सुरक्षित नहीं हैं, पर ऐसा कुछ नहीं है। हमने पूरा दिन गांदरबल में गुजारा, जिसमें नारानाग, लार से लेकर कई जगहों पर गए यहां बहुत से मंदिर हैं। हमने देखा कि जो जहां के रहने वाले लोकल कश्मीरी हैं वह भी इन जगहों की हिफाजत करते हैं और यहां साफ-सफाई भी करते हैं। ऐसा नहीं है कि पंडितों के यहां होने की वजह यह मंदिर खस्ताहाल हैं।

वह कहते हैं कि पंडित हमारे समाज का हिस्सा हैं और हमने पंडित शिक्षकों से शिक्षा ग्रहण की है। हमारे पूर्वजों में बहुत ही इज्जत है। उन्हें कश्मीरियों से कोई डर नहीं है। अगर कहीं किसी का निधन हो जाता है तो बारिश, बर्फ, ठंड कुछ भी हो मुस्लिम वहां पहुंचकर बिना कुछ सोचे उनकी मदद करते हैं। हम चाहते हैं कि वह पहले की तरह यहां आकर रहें हम सब मिलकर रहेंगे। कुछ हालात ऐसे हुए थे कि वह यहां नहीं रह पाए थे पर अब वह इधर सुरक्षित हैं। सरकार उनकी बेहद मदद कर रही है और हम सब भाईयों की तरह उनकी मदद करेंगे।

इस बीच डॉ तौसीफ ने कहा, अज्ञात बंदूकधारियों ने केवल पंडितों को नहीं मारा इन्होंने हर एक को मारा है, चाहे वह मुस्लिम हों या सिख। धर्म के नाम पर केवल राजनीति हो रही है। उन्होंने कहा कि एक करोड़ पर्यटन कश्मीर आए पर किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। अमरनाथ यात्रा के लिए जब श्रद्धालु आते हैं तो कश्मीरी उन्हें कंधे पर बिठाकर ले जाता है। उनका कहना था कि सरकार को पता करना चाहिए कि वह कौन है जो नहीं चाहता कि कश्मीरी अमन और चैन से रहें। उन्होंने पंडितों से कहा कि वह जहां पर सुरक्षित हैं और हम उनके साथ हैं। 

धर्म से बड़ा कर्म
टीम के एक अन्य सदस्य सोशल एक्टिविस्ट मुजफर अहमद भट ने बताया कि हमनें अभियान शुरू किया है। सर्दी में कश्मीरी पंडित यहां से बाहर जाते हैं और वह उनके मंदिरों की सफाई कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम मंदिरों की देखरेख कर रहे हैं ताकि इन धर्मस्थलों को पूरी तरह से सुरक्षित किया जाए। भट ने कहा कि धर्म से बड़ा है कर्म और हर किसी को उसी पर निर्भर होना चाहिए। उन्होंने बताया कि पिछले 100 सालों से मंदिरों की देखरेख मुस्लिम कर रहे हैं और यह सुरक्षित है। टीम में दो और सक्रिय सदस्य हैं मोहम्मद अमीन डार व अमजद रिजवी।

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बीते तीन दशकों से ज्यादा समय से आतंकवाद का दंश झेल रही कश्मीर घाटी में कश्मीरियत को जिंदा रखने की कवायद भी जारी है। पूरी घाटी से समय -समय पर ऐसी सकारात्मक खबरें आती रहती हैं जो इस अहसास को मजबूती प्रदान करती हैं कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले में कुछ स्थनीय मुस्लिम युवाओं ने यहां के मंदिरों की साफ-सफाई का जिम्मा उठाया है। ये कहते हैं कि कश्मीरी पंडित हमारे भाई हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि उनकी गैर मौजूदगी में इन मंदिरों का ध्यान रखा जाए।

‘ग्रीन कश्मीर रेवोलुशन’ संस्था के संस्थापक डॉ. तौसीफ अहमद बताते हैं कि हमारी टीम की ओर से मंदिरों की साफ-सफाई का अभियान शुरू किया गया है। हमारा संदेश यही है कि कश्मीरी अवाम अपनी मेहमान नवाजी के लिए जानी जाती है पर अफसोस इस बात का है कि कुछ लोग इसे बदनाम कर रहे हैं। अलग-अलग मंचों पर कहा जाता है कि यहां मंदिर सुरक्षित नहीं हैं, पंडित सुरक्षित नहीं हैं, पर ऐसा कुछ नहीं है। हमने पूरा दिन गांदरबल में गुजारा, जिसमें नारानाग, लार से लेकर कई जगहों पर गए यहां बहुत से मंदिर हैं। हमने देखा कि जो जहां के रहने वाले लोकल कश्मीरी हैं वह भी इन जगहों की हिफाजत करते हैं और यहां साफ-सफाई भी करते हैं। ऐसा नहीं है कि पंडितों के यहां होने की वजह यह मंदिर खस्ताहाल हैं।

वह कहते हैं कि पंडित हमारे समाज का हिस्सा हैं और हमने पंडित शिक्षकों से शिक्षा ग्रहण की है। हमारे पूर्वजों में बहुत ही इज्जत है। उन्हें कश्मीरियों से कोई डर नहीं है। अगर कहीं किसी का निधन हो जाता है तो बारिश, बर्फ, ठंड कुछ भी हो मुस्लिम वहां पहुंचकर बिना कुछ सोचे उनकी मदद करते हैं। हम चाहते हैं कि वह पहले की तरह यहां आकर रहें हम सब मिलकर रहेंगे। कुछ हालात ऐसे हुए थे कि वह यहां नहीं रह पाए थे पर अब वह इधर सुरक्षित हैं। सरकार उनकी बेहद मदद कर रही है और हम सब भाईयों की तरह उनकी मदद करेंगे।

इस बीच डॉ तौसीफ ने कहा, अज्ञात बंदूकधारियों ने केवल पंडितों को नहीं मारा इन्होंने हर एक को मारा है, चाहे वह मुस्लिम हों या सिख। धर्म के नाम पर केवल राजनीति हो रही है। उन्होंने कहा कि एक करोड़ पर्यटन कश्मीर आए पर किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। अमरनाथ यात्रा के लिए जब श्रद्धालु आते हैं तो कश्मीरी उन्हें कंधे पर बिठाकर ले जाता है। उनका कहना था कि सरकार को पता करना चाहिए कि वह कौन है जो नहीं चाहता कि कश्मीरी अमन और चैन से रहें। उन्होंने पंडितों से कहा कि वह जहां पर सुरक्षित हैं और हम उनके साथ हैं। 

धर्म से बड़ा कर्म

टीम के एक अन्य सदस्य सोशल एक्टिविस्ट मुजफर अहमद भट ने बताया कि हमनें अभियान शुरू किया है। सर्दी में कश्मीरी पंडित यहां से बाहर जाते हैं और वह उनके मंदिरों की सफाई कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम मंदिरों की देखरेख कर रहे हैं ताकि इन धर्मस्थलों को पूरी तरह से सुरक्षित किया जाए। भट ने कहा कि धर्म से बड़ा है कर्म और हर किसी को उसी पर निर्भर होना चाहिए। उन्होंने बताया कि पिछले 100 सालों से मंदिरों की देखरेख मुस्लिम कर रहे हैं और यह सुरक्षित है। टीम में दो और सक्रिय सदस्य हैं मोहम्मद अमीन डार व अमजद रिजवी।



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