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भगवान बिंदु माधव का परिधान बनाने के लिए मलाई पंचगंगा घाट स्थित आसपास के मोहल्ले के घरों में ही तैयार की जाती है। भोर में मंदिर खुलने से पहले भक्तगण मलाई की थाली लेकर मंदिर पहुंचते हैं। मराठी परिवार ही इस परंपरा को निभा रहे हैं।

पंच गंगा घाट पर बिंदु माधव मंदिर में मलाई का वस्त्र पहनाया गया।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
शिव की नगरी काशी की परंपराएं भी अनोखी हैं। बाबा विश्वनाथ के साथ भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। कार्तिक मास पर्यंत भगवान बिंदु माधव मलाई के वस्त्र और पंचमेवा का मुकुट धारण करेंगे। मराठी परिवार की ओर से लंबे समय से यह परंपरा चली आ रही है। पंचगंगा घाट स्थित मंदिर में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है।
भगवान बिंदु माधव का परिधान बनाने के लिए मलाई पंचगंगा घाट स्थित आसपास के मोहल्ले के घरों में ही तैयार की जाती है। भोर में मंदिर खुलने से पहले भक्तगण मलाई की थाली लेकर मंदिर पहुंचते हैं। मराठी परिवार ही इस परंपरा को निभा रहे हैं। भगवान के वस्त्र निर्माण के लिए जरूरी थाल लेकर वह मंदिर में वापस चले जाते हैं। जिसकी थाली अंदर जाती है वह अपने आप को धन्य समझता है और जिसकी थाली स्वीकार नहीं होती वह दूसरे दिन फिर अपनी थाली लेकर मंदिर की चौखट पर हाजिरी लगाता है। यह परंपरा पूरे मास पर्यंत अनवरत चलती रहती है। शृंगार के बाद भगवान का मलाई और पंचमेवा के मुकुट से सजा हुआ स्वरूप तो बस देखते ही बनता है।
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वस्त्र बनाने के दौरान होती रहती है आरती
अजय शर्मा ने बताया कि भगवान बिंदुमाधव का वस्त्र और मुकुट तैयार करने के दौरान डेढ़ घंटे का विशेष पूजन किया जाता है। पूजन के दौरान पांच आरती होती है। चार आरती के दौरान मंदिर के अंदर मलाई काटकर भगवान का परिधान तैयार किया जाता है और मलाई का वस्त्र और पंचमेवा का मुकुट धारण कराते समय पांचवीं आरती उतारी जाती है। आरती के बाद कुछ देर दर्शन के लिए मंदिर के पट खोले जाते हैं।
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