कृष्ण की तरह जीएं

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गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

आर्ट ऑफ लिविंग

जन्माष्टमी को भगवान कृष्ण का जन्म दिन मनाया जाता है. अष्टमी, अर्द्धचंद्र की बहुत महत्ता है, क्योंकि यह दृश्य एवं दृष्टा अर्थात् दिखने वाले भौतिक जगत एवं अदृश्य आध्यात्मिक जगत के वास्तविक पहलुओं के बीच उत्तम प्रकार के संतुलन को दर्शाता है. अष्टमी के दिन भगवान कृष्ण का जन्म इस बात को दर्शाता है कि उनका आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों जगत में आधिपत्य था. भगवान कृष्ण द्वारा दी गयी शिक्षा आज के समय के अनुसार प्रासंगिक है, क्योंकि इसके द्वारा न तो आप भौतिक जगत में पूर्ण रूप से खोते हैं और न ही भौतिक जगत को पूर्ण रूप से छोड़ देते हैं. गोकुलाष्टमी का उत्सव मनाने का अर्थ है कि आप बिल्कुल विपरीत, फिर भी एक-दूसरे के पूरक गुणों को ग्रहण करें तथा उन्हें अपने जीवन में लागू करें.

कृष्ण का अर्थ है, सबसे अधिक आकर्षक- जो आपकी आत्मा है, आपका अस्तित्व है. राधे-श्याम अनंत को दर्शाता है. राधे व्यक्तिगत जीवन है और श्याम जीवन का अनंत स्वरूप. कृष्ण प्रत्येक जीव की आत्मा हैं और जब हमारा सच्चा स्वाभाविक स्वरूप चमकता है, तब हमारे व्यक्तित्व में निखार आता है, हमें कुशलताएं प्राप्त होती हैं और जीवन में समृद्धि आती है.

ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण मक्खन चुराते थे. यह कहावत किस बात को दर्शाती है? मक्खन एक प्रक्रिया में प्राप्त होने वाला अंतिम उत्पाद होता है. सबसे पहले दूध से दही बनाया जाता है और फिर दही को मथ कर मक्खन बनता है. दूध या दही की तरह जीवन भी मंथन की एक प्रक्रिया है, जो बहुत सारी घटनाओं से होकर गुजरता है. अंततः मक्खन ऊपर आ जाता है, जो आपके भीतर की पवित्रता है.

इस प्रक्रिया का सार यही है कि आपके जीवन में संतुलन, आनंद, प्रसन्नता बनी रहे और आपका मन केंद्रित रहे. कृष्ण सभी प्रकार की संभावनाओं तथा मानवीय एवम् ईश्वरीय गुणों के पूर्ण रूप से खिल जाने का प्रतीक हैं. जन्माष्टमी वह दिन है, जब आपकी चेतना में कृष्ण का विराट स्वरूप पुनः जागृत हो जाता है.

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