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दो साल पहले एक हाथी ने कुछ लोगों को घायल कर दिया था। इसी वर्ष एक हाथी ने ऑटो को पलट दिया था, जिससे एक बच्चे की मौत हो गई थी। एक पालतू हाथी ने अपने महावत को मार डाला था। इस तरह के हादसों के बावजूद वन विभाग को यह नहीं पता है कि जिले में किसके पास पालतू हाथी हैं। यदि किसी ने हाथी पाला है तो उसका पंजीकरण कराया है क्या? लाइसेंस लिया है क्या? नियमों का पालन कर रहा है क्या? पाले गए जानवर की उचित देखभाल कर रहा है क्या? ऐसी जानकारियां वन विभाग के पास नहीं हैं। वन विभाग कोई कार्रवाई भी नहीं करता है।
नियमानुसार हाथी पालने वाले को वन विभाग में पंजीकरण कराना जरूरी होता है, ताकी विभाग की ओर से पशु डॉक्टर उसकी समय-समय पर जांच कर सकें। लेकिन, न तो वन विभाग की ओर से हाथी पालकों से संपर्क करने की कोशिश की जाती है। न खुद हाथी पालने के शौकीन लोग वन विभाग से संपर्क करते हैं। हादसा होने के बाद नाम उजागर होने पर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है।
नोटिस जारी कर भूल गए
जनप्रतिनिधि के हाथी ने जब महावत को जान से मारा था तो तत्कालीन डीएफओ अविनाश कुमार ने नौ लोगों को नोटिस भेजा था। बाद में इसमें क्या हुआ किसी को पता नहीं चला। इस तरह नोटिस भेजकर वन विभाग के अधिकारी खानापूर्ति कर लेते हैं।
अगर जिले में हाथी है और उसका पंजीकरण वन विभाग में नहीं है तो वन विभाग कार्रवाई कर सकता है। लेकिन कोई कार्रवाई करने के लिए वन विभाग को हाथी रखने वालों की सूची बनानी होगी। इसके बाद पंजीकरण नहीं करने वालों के खिलाफ न्यायालय में अर्जी देनी होगी। फिर अदालत के अदेशानुसार कार्रवाई करनी होगी।
हाथी पालने के नियम
हाथी पालने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डेन से एनओसी लेनी होती है। इसके लिए हाथी पालने वाले को आवेदन करना होता है। फिर वन विभाग की टीम जांच कर एनओसी और लाइसेंस देने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है। पालने का लाइसेंस नहीं होने पर हाथी को न्यायालय के माध्यम से जब्त किया जा सकता है। स्वाथ्य की नियमित जांच में यदि हाथी की मानसिक स्थिति ठीक नहीं होती है तो उसे जंगल में छोड़ दिया जाता है।
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