छात्रवृत्ति घोटाला: सरकारी विभागों से जुटाया था दिव्यांग विद्यार्थियों का डाटा, 1.57 में 1.47 लाख खा जाते थे घोटालेबाज

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Truths of scholorship scams in Uttar Pradesh.

प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : सोशल मीडिया

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छात्रवृत्ति घोटाले के मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है। घोटाले में शामिल संस्थानों ने दिव्यांग विद्यार्थियों का डाटा सरकारी विभागों से जुटाया था। एक तरह से सरकारी विभागों में आरोपियों की ये बड़ी सेंधमारी है। जांच की जद में सरकारी कर्मचारी भी आ गए हैं। सुबूत मिलने पर इनको आरोपी बनाया जा सकता है।

ईडी ने छात्रवृत्ति घोटाले का खुलासा कर इसकी जांच रिपोर्ट शासन को भेजी थी। शासन के आदेश पर हजरतगंज पुलिस ने 30 मार्च 2023 को दस संस्थानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। इसमें करीब सौ करोड़ रुपये के घोटाले की आशंका जाहिर की थी। जांच में सामने आया था कि हाइजिया ग्रुप घोटाले का मास्टरमाइंड है। ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का मुकदमा दर्ज कर हाइजिया ग्रुप के इजहार हुसैन जाफरी, अली अब्बास जाफरी और रवि प्रकाश गुप्ता को गिरफ्तार कर जेल भेजा था।

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इधर, पुलिस ने जांच के लिए एसआईटी गठित की। सूत्रों के मुताबिक जांच में पता चला कि 50 फीसदी घोटाला दिव्यांग विद्यार्थियों के नाम पर ली गई छात्रवृत्ति में किया गया। अब इससे संबंधित तथ्य सामने आया है। आरोपियों ने विकलांग कल्याण विभाग, सीएमओ कार्यालय आदि सरकारी विभागों से दिव्यांग विद्यार्थियों का डाटा जुटाया था।

दाखिला ले चुके छात्रों से भी लेते थे मदद

आरोपी दाखिला ले चुके छात्रों की मदद से और दिव्यांग विद्यार्थियों की तलाश करते थे। छात्रों से कहते थे कि वह अपने साथी व रिश्तेदार का यहां दाखिल करवा सकते हैं। इससे काफी छात्र संस्थानों को मिल जाते थे। जो डाटा सरकारी विभागों से आरोपियों को मिलता था, उसमें विद्यार्थियों का नाम, पता व मोबाइल नंबर होता था। इससे वह उनसे आसानी से संपर्क कर लेते थे।

इसलिए राजी हो जाते थे दिव्यांग विद्यार्थी

आरोपी दिव्यांग विद्यार्थियों से संपर्क कर उनको मुफ्त में दाखिला देने की बात कहते थे। इतना ही नहीं, बिना कॉलेज आए डिग्री-डिप्लोमा देने का फायदा बताने के साथ ही हर साल आठ से दस हजार रुपये छात्रवृत्ति देने का दावा करते थे। इससे वह आसानी से राजी हो जाते थे। वे यह करते भी थे। जैसे पीजीडीएम कोर्स में दाखिला लेने वाले दिव्यांग छात्र की 1.57 लाख रुपये छात्रवृत्ति आती थी। इसमें दस हजार रुपये वह छात्र को दे देते थे। शेष 1.47 लाख रुपये पार कर लेते थे।

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