देव आस्था: यहां तप कर राक्षस से देवी बनीं थीं मां हिडिंबा, चट्टान के नीचे हैं चरण चिह्न

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सार

देवी हिडिंबा ने ही कुल्लू के राजा को राजपाठ दिया था। जनश्रुति के अनुसार विहंगमणि पाल नामक व्यक्ति कुम्हार के पास काम करता था। वह वृक्ष के नीचे लेटकर आराम कर रहा था।

मनाली शहर के पास ढुंगरी में देवदार के घने पेड़ों के बीच पगौड़ा शैली से बुना अद्भुत हिडिंबा मंदिर देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों की पहली पसंद है। यह वही स्थल है जहां हिडिंबा ने तप कर राक्षस रूप को त्याग कर देवी बनीं थीं। मां हिडिंबा का जन्म स्थान नागालैंड का दीमापुर माना जाता है। इस शहर को कभी हिडिंबापुर के नाम से जाना जाता था।

यहां रहने वाली डीमाशा जाति खुद को भीम और हिडिंबा का वंशज मानती हैं। मनाली का समीपवर्ती ढुंगरी वह गांव है जहां पर देवी ने तप किया। ढुंगरी में माता हिडिंबा का मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर का निर्माण 1553 ई. में कुल्लू के राजा बहादुर सिंह ने कराया था।

करीब 40 मीटर ऊंचा मंदिर कला का अद्भुत नमूना है। लकड़ी पर अद्भुत नक्काशी की गई है। मुख्य द्वार पर गणपति, शिव, पार्वती और नव ग्रह हैं तो गोपियों के साथ भगवान श्रीकृष्ण के नृत्य को भी बखूबी दिखाया गया है। 

हिडिंबा मंदिर के पास विशाल चट्टान आज भी विद्यमान है। मान्यता है कि इसी चट्टान के नीचे देवी ने तप किया था। आज भी चट्टान के नीचे देवी मां हिडिंबा के चरणों के साक्षात दर्शन होते हैं। मां हिडिंबा को काली और दुर्गा के रूप में पूजा जाता है। यहां ज्येष्ठ संक्रांति को देवी हिडिंबा के जन्मोत्सव पर तीन दिवसीय मेला हर वर्ष आयोजित किया जाता है। इसमें आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग 15 देवी-देवता भाग लेते हैं।

मेले में देव संस्कृति के साक्षात दर्शन करने को मिलते हैं। हिडिंबा मंदिर से कुछ ही दूरी पर घटोत्कच्छ पूजा स्थल है। देवी हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच्छ ने महाभारत के युद्ध में धर्म स्थापना के लिए बलिदान दिया था। हिडिंबा मां की कथा भी महाभारत से जुड़ी है। बताया जाता है कि लाक्षागृह से बचने के बाद माता कुंती समेत पांडव जंगल की ओर निकले।

इस दौरान भीम का हिडिंब राक्षण के साथ युद्ध हुआ। युद्ध में हिडिंब मारा गया। इसके बाद भीम का हिडिंब की बहन हिडिंबा के साथ विवाह हुआ। हिडिंबा ने इसके बाद तप कर देवी शक्तियां प्राप्त कीं। देवी हिडिंबा के कारदार और पुजारी रमन शर्मा कहते हैं कि हिडिंबा मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है। दूर-दूर से लोग मां हिडिंबा के दर्शन के लिए यहां आते हैं। 

मान्यता है कि देवी हिडिंबा ने ही कुल्लू के राजा को राजपाठ दिया था। जनश्रुति के अनुसार विहंगमणि पाल नामक व्यक्ति कुम्हार के पास काम करता था। वह वृक्ष के नीचे लेटकर आराम कर रहा था। वहां से एक ज्योतिषी अचानक आए और उसके पैरों की रेखाओं को देखकर कहा कि तुम्हारे पैरों में राजयोग लिखा है। विहंगमणि को विश्वास नहीं हुआ तो ज्योतिषी ने कहा कि तुम इसी रास्ते से आगे जाओ। रास्ते में तुम्हें एक बुढ़िया मिलेगी।

उसके पास जो भी सामान या बोझा होगा उसे किसी भी तरह से मांग लेना। वहीं से तुम्हारे राजा बनने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। वह उसी रास्ते पर आगे बढ़ रहा था। रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली। उसने उसे दादी कहकर पुकार और उसका सामान मांगा। पहले तो बुढ़िया ने इंकार लिया, लेकिन बार-बार आग्रह करने पर बुढ़िया ने उसे सामान दे दिया। दरअसल बुढ़िया देवी मां हिडिंबा थी। वह पीती ठाकुरों के जुल्मों से प्रजा को मुक्ति दिलाने आई थी। बुढ़िया उसे भनारा नामक स्थान पर ले गई। उसे अपने कंधे पर उठाया और कहा कि जहां तक तुझे दिख रहा है वहां तक तेरा शासन होगा। तुम यहां के राजा कहलाओगे।

इस स्थान का नाम जयधारा पड़ा। पीती ठाकुर उसे मारने आए। वह जान बचाने के लिए बुढ़िया की ओर आया। बुढ़िया एक घर की तीसरी मंजिल में अपने बाल संवार रहीं थीं। बुढ़िया ने अपने केश नीचे फेंके और बोली कि इसके सहारे ऊपर आओ। उसे अनाज रखने कि कोठरी में छिपा लिया और सभी पीती ठाकुरों का नाश किया। आज भी कुल्लू का राज परिवार देवी मां हिडिंबा को दादी कहकर पुकारता है। दशहरा पर्व हिडिंबा मां की उपस्थिति के बिना शुरू नहीं होता।



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