पुत्रदा एकादशी के दिन बन रहा शुभ योग का संयोग, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

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Putrada Ekadashi Vrat: पौष मास के शुक्लपक्ष की पुत्रदा एकादशी 21 जनवरी को रोहिणी नक्षत्र व शुक्ल योग में मनायी जायेगी. पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से श्रद्धालुओं को तेजस्वी व दीर्घायु संतान की प्राप्ति व वायपेयी यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है. गृहस्थजन व वैष्णव दोनों इस दिन एकादशी का व्रत करेंगे. संतान कारक इस व्रत को करने से व इसके माहात्म्य को पढ़ने व सुनने से समस्त पापों का क्षय होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है, इस एकादशी की महिमा का व्याख्यान योगेश्वर श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से किया था. इस दिन व्रत करने और श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से माता लक्ष्मी व नारायण दोनों की कृपा बरसती है. इस व्रत में श्रीकृष्ण के बालस्वरूप में लड्डू गोपाल की पूजा कर उनकी आराधना करने से संतान सुख मिलता है.

पुत्रदा एकादशी व्रत

पौष शुक्ल एकादशी पर 21 जनवरी को अतिपुण्यकारी द्विपुष्कर योग का संयोग बन रहा है. यह एकादशी नववर्ष की दूसरी एकादशी होगी. एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी दोनों की कृपा मिलती है. भगवान नारायण को गंगाजल, पंचामृत से स्नान, नूतन वस्त्र, चंदन, शीतल प्रसाद व ऋतुफल का भोग अर्पित कर आरती होगी.

शुभ मुहूर्त

  • चर मुहूर्त: सुबह 07:59 बजे से 09:19 बजे तक

  • लाभ मुहूर्त : सुबह 09:19 बजे से 10:40 बजे तक

  • अमृत मुहूर्त : सुबह 10:40 बजे से 12:01 बजे तक

  • अभिजित मुहूर्त : दोपहर 11:39 बजे से 12:22 बजे तक

  • शुभ मुहूर्त : दोपहर 01:21 बजे से 02:42 बजे तक

पुत्रदा एकादशी पूजा विधि

पुत्रदा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर व्रत संकल्प लें. पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पीली मिठाई का भोग लगाना चाहिए, क्योंकि पीला रंग भगवान श्री हरि का प्रिय माना गया है. भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी जी का भी पूजन करें, इस दिन पीपल के पेड़ में जल अर्पित करना भी शुभ माना जाता है.

एकादशी पूजा व्रत सामग्री

भगवान विष्णु का चित्र, नारियल, फूल, फल, धूप, दीप, कपूर, पंचामृत, तुलसी के पत्ते, पान, सुपारी, लौंग, चंदन, घी, अक्षत और मिठाई है.

एकादशी व्रत का महत्व

भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं एकादशी माता के जन्म और इस व्रत की कथा युधिष्ठिर को सुनाई थी. सतयुग में मुर नामक एक बलशाली राक्षस था. उसने अपने पराक्रम से स्वर्ग को जीत लिया था. उसके पराक्रम के आगे इंद देव, वायु देव और अग्नि देव भी नहीं टिक पाए थे, इसलिए उन सभी को जीवन यापन के लिए मृत्युलोक जाना पड़ा.

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