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पूर्व पीएम इंदिरा गांधी
– फोटो : संवाद
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मारुति घोटाले की जांच करने वाले आयोग ने रिपोर्ट में कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इस धांधली के बारे में पूरी जानकारी थी। जांच करने वाले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसी गुप्ता ने निष्कर्ष निकाला था कि मारुति के कामकाज से सार्वजनिक जीवन की पवित्रता नष्ट हुई। इसमें भ्रष्टाचार भी हुआ। साथ ही देश की सुरक्षा से भी खिलवाड़ किया गया। आम चुनाव 1980 से पहले 1979 में सरकार ने यह रिपोर्ट जारी की थी। उस समय चुनाव में यह मुद्दा खूब गरमाया था।
अमर उजाला में 8 सितंबर 1979 को प्रकाशित समाचार के अनुसार, सरकार ने जस्टिस एसी गुप्ता आयोग की रिपोर्ट तत्कालीन सरकार ने जारी की थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि इस मामले में कानून को ताक पर रखा गया। ऐसा मारुति को फायदा पहुंचाने के लिए कई मौकों पर किया गया। अधिकारियों को मीसा, सीबीआई जांच की धमकियों से डराया गया।
रिपोर्ट में कहा गया कि सार्वजनिक जीवन वाले लोगों के लिए खतरा पैदा हो गया। 1017 पेज की रिपोर्ट में कहा गया था कि मारुति मामले में प्रधानमंत्री सचिवालय ने पूरी दिलचस्पी दिखाई। अधिकारियों ने गलत आदेशों का पालन किया। संजय गांधी के इस मामले से जुड़े होने के कारण प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता का दुरुपयोग किया।
न्यायमूर्ति गुप्ता ने लिखा कि संजय गांधी मारुति कंपनी के लिए जो भी जरूरत होती थी, उन्हें फौरन मिल जाता था। यहां तक कि संजय गांधी आवेदन पत्र भी ठीक से भर कर नहीं भेजते थे। जस्टिस गुप्ता ने रिपोर्ट में कहा कि 1959 से 1968 तक उद्योग मंत्री डाॅ. संजीव रेड्डी और कंपनी मामलों के मंत्री फखरुद्दीन अली अहमद इस विचार के थे कि कार बनाने की फैक्टरी सरकारी क्षेत्र में स्थापित की जाए। इसके बावजूद दिसंबर 1968 में जब संजय गांधी ने कार बनाने का कारखाना बनाने की अनुमति मांगी तो सरकारी नीति उनके अनुकुल बदल गई।
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