योगध्यान बदरी मंदिर में विराजे उद्धव व कुबेर – फोटो : अमर उजाला
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बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद रविवार को भगवान कुबेर और उद्धव जी अपने शीतकालीन गद्दीस्थल योगध्यान बदरी पांडुकेश्वर में विराजमान हो गए। बदरीनाथ के मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी और धर्माधिकारी राधा कृष्ण थपलियाल ने पूजा अर्चना के बाद कुबेर और उद्धव जी की मूर्ति को मंदिर में विराजमान किया। अब शीतकाल में छह माह यहीं बदरीनाथ की पूजा-अर्चना होगी।
सेना के बैंडों की अगुवाई में सुबह नौ बजे बामणी गांव से कुबेर, उद्धव और शंकराचार्य की गद्दी शीतकाल प्रवास के लिए रवाना हुई। पांडुकेश्वर पहुंचने पर स्थानीय लोगों ने डोली का भव्य स्वागत किया। सोमवार को आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी और गरुड़ जी की प्रतिमा को नृसिंह मंदिर जोशीमठ में विराजमान किया जाएगा।
इस दौरान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज, बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय, उपाध्यक्ष किशोर पंवार, मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी योगेंद्र सिंह, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, स्वामी मुकुंदानंद महाराज, मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़, विकास सनवाल सहित कई लोग मौजूद थे।
शीतकाल में बर्फ के आगोश में रहता है बदरीनाथ धाम
शीतकाल के लिए बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो गए हैं। शीतकाल में (दिसंबर से मई तक) बदरीनाथ धाम बर्फ के आगोश में रहता है। दिसंबर से फरवरी तक धाम से हनुमान चट्टी (10 किमी) तक बर्फ रहती है। इस दौरान धाम में पुलिस और मंदिर समिति के दो कर्मचारी रहते हैं। चीन सीमा क्षेत्र होने के कारण माणा गांव में आईटीबीपी के जवान रहते हैं।
जोशीमठ की एसडीएम कुमकुम जोशी ने बताया कि कपाट बंद होने के बाद आम लोगों को धाम तक जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। बदरीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने बताया कि वर्ष में मानव और देवता छह-छह माह तक बदरीनाथ की पूजा करते हैं। आदि गुरु शंकराचार्य की ओर से शुरू की गई परंपरा के अनुसार बदरीनाथ की पूजा दक्षिण भारत के मुख्य पुजारी ही पूजा करते हैं जिन्हें रावल कहते हैं।
विस्तार
बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद रविवार को भगवान कुबेर और उद्धव जी अपने शीतकालीन गद्दीस्थल योगध्यान बदरी पांडुकेश्वर में विराजमान हो गए। बदरीनाथ के मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी और धर्माधिकारी राधा कृष्ण थपलियाल ने पूजा अर्चना के बाद कुबेर और उद्धव जी की मूर्ति को मंदिर में विराजमान किया। अब शीतकाल में छह माह यहीं बदरीनाथ की पूजा-अर्चना होगी।
सेना के बैंडों की अगुवाई में सुबह नौ बजे बामणी गांव से कुबेर, उद्धव और शंकराचार्य की गद्दी शीतकाल प्रवास के लिए रवाना हुई। पांडुकेश्वर पहुंचने पर स्थानीय लोगों ने डोली का भव्य स्वागत किया। सोमवार को आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी और गरुड़ जी की प्रतिमा को नृसिंह मंदिर जोशीमठ में विराजमान किया जाएगा।
इस दौरान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज, बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय, उपाध्यक्ष किशोर पंवार, मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी योगेंद्र सिंह, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, स्वामी मुकुंदानंद महाराज, मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़, विकास सनवाल सहित कई लोग मौजूद थे।
शीतकाल में बर्फ के आगोश में रहता है बदरीनाथ धाम
शीतकाल के लिए बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो गए हैं। शीतकाल में (दिसंबर से मई तक) बदरीनाथ धाम बर्फ के आगोश में रहता है। दिसंबर से फरवरी तक धाम से हनुमान चट्टी (10 किमी) तक बर्फ रहती है। इस दौरान धाम में पुलिस और मंदिर समिति के दो कर्मचारी रहते हैं। चीन सीमा क्षेत्र होने के कारण माणा गांव में आईटीबीपी के जवान रहते हैं।
जोशीमठ की एसडीएम कुमकुम जोशी ने बताया कि कपाट बंद होने के बाद आम लोगों को धाम तक जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। बदरीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने बताया कि वर्ष में मानव और देवता छह-छह माह तक बदरीनाथ की पूजा करते हैं। आदि गुरु शंकराचार्य की ओर से शुरू की गई परंपरा के अनुसार बदरीनाथ की पूजा दक्षिण भारत के मुख्य पुजारी ही पूजा करते हैं जिन्हें रावल कहते हैं।