हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में बूढ़ी दिवाली पर्व पूरे उल्लास के साथ मनाया गया। कुल्लू जिले में दियाली और बूढ़ी दिवाली की धूम रही है। जिले के बाह्य सराज से लेकर बंजार तक दियाली और बूढ़ी दिवाली पारंपरिक तरीके से मनाई गई। बंजार की तीर्थन घाटी की शिल्ही पंचायत के शिल्ह गांव में भी दियाली के अवसर पर 20 फीट लंबी मशालें जलाकर भूत प्रेतों को भगाया गया। दो दिनों तक मनाई दियाली में चार गांव शिल्ह, गरूली, परबाड़ी तथा शरूगंर गांव के लोगों ने भाग लेकर परंपरा को निभाया। देवता चोरल नाग शिल्ह के सम्मान में दियाली मनाई गई। इस अवसर पर ग्रामीरणों ने मशालों को लेकर न केवल भूत-प्रेत भगाए बल्कि मशालों के साथ नृत्य भी किया गया। ग्रामीण कमली राम, मेहर चंद, प्रवेश कुमार और तेजा सिंह ने कहा कि शिल्ह गांव में सदियों से देवता चोरल नाग की अगुवाई में दियाली मनाई जाती है। उन्होंने कहा कि वीरवार को देवता की अगुवाई में देवालय परिसर में लंबी-लंबी मशालों को जलाया गया। इस दौरान पारंपरिक गीतों को गाकर नृत्य किया है। वहीं बंजार के अन्य इलाकों में भी इस पर्व का आयोजन किया गया।
घास की रस्सी से की मंदिर परिसर की परिक्रमा खुडीजल की देहुरी में बूढ़ी दिवाली देवता की गैर मौजूदगी में निशान डाहुली के साथ मनाई गई। देवता खुडीजल इन दिनों सुकीसिंअ के दौर से लौट रहे हैं। अभी देवता का रथ जाबन पहुंचा है। देवता खुडीजल मौजूद न होने पर डाहुली से सभी देव परंपराओं को निभाया गया। इस दौरान मंदिर परिसर में घास (मूंज) की बनी रस्सी को तैयार किया था। रस्सी से कोट और देहुरी गांव के ग्रामीणों ने मंदिर परिसर में तीन बार परिक्रमा की। देवता के पुजारी शशि कांत शर्मा और गूर चमन लाल ने कहा कि इस मौके पर पुजारी प्रथा के अनुसार 90 मुजारे से देवता खुडीजल महाराज की पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री को एकत्रित करते हैं। इसमें जौ, गैहूं, मक्की और घी शामिल है। बूढ़ी दिवाली के दूसरे दिन वीरवार को देव स्नान के बाद झाले का आयोजन किया गया। राजा बलि और बामन अवतार से संबंधित काव गए गए। इसके अलावा बाह्य सराज के कुईंर में देवता ब्यास ऋषि की सम्मान में बूढ़ी दिवाली मनाई गई। इस दौरान चोतरू नाग और पटारनी नाग देवता भी मौजूद रहे। कोट बूढ़ी दिवाली में देवता कोट भझारी और बंजार के बाहू के देवता भझारी का भव्य देव मिलन हुआ है। इस दौरान देवनृत्य आकर्षण का केंद्र रहा।
मंडी जिले के उपमंडल करसोग में बूढ़ी दिवाली पर्व पर बुधवार आधी रात को ग्रामीण क्षेत्रों च्वासी के महोग, खन्योल च्वासी मंदिर और कांडी कौजौन ममलेश्वर महादेव देव थनाली मंदिर में लोगों ने देवदार और चीड़ की लकड़ियों की मशालें जलाकर रोशनी की और फिर ढोल नगाड़ों की थाप पर लहराते हुए नृत्य किया। मशालों के साथ गांव की परिक्रमा कर दशकों पुरानी लोक परंपरा को निभाया। शाम के समय देव थनाली नाग माहूं बनेछ के नृत्य के साथ बूढ़ी दिवाली मनाने का पर्व शुरू हुआ। लोगों ने हाथों में मशालें लेकर गांव की परिक्रमा पूर्ण करने के बाद वीरवार तड़के मंदिर में लौटने पर लोक नृत्य के साथ पर्व का समापन किया। ममलेश्वर महादेव मंदिर देव थनाली के कारदार युवराज ठाकुर ने बताया कि गांव में अन्न, धन और सुख समृद्धि की कामना के लिए दिन के समय मंदिर में भंडारे का भी आयोजन किया गया।
यह है मान्यता मान्यता है कि भगवान राम जब 14 वर्ष के बाद लंका पर विजय प्राप्त करके दिवाली के दिन अयोध्या पहुंचे थे तो लोगों को इसकी जानकारी एक महीने बाद मिली थी। इस कारण करसोग के कई ग्रामीण इलाकों में दिवाली के एक महीने बाद बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा है।
बूढ़ी दिवाली के उपलक्ष्य में कांडी कौजौन ममलेश्वर महादेव देव थनाली मंदिर में गूरों ने खेलते हुए करीब 10 फीट गहरी बावड़ी में छलांग लगाकर कड़ाके की सर्दी में ठंडे पानी में स्नान किया। इसके बाद जयकारों के साथ आधी रात को करीब एक बजे ग्रामीणों ने दरेछ (मशालें) जलाकर गांव की परिक्रमा की और सुबह करीब चार बजे मंदिर में लौट आए। इस दौरान लोगों ने गांव में खुशहाली और शांति बनाए रखने के लिए देवता से आशीर्वाद लिया।
वहीं, निरमंड में मनाए जा रहे ऐतिहासिक बूढ़ी दिवाली मेले की प्रथम रात्रि में दशनामी जूना अखाड़े में भारी रौनक देखने को मिली। यहां स्थानीय लोग रातभर अलाव के चारों ओर ढोल नगाड़ों की धुनों पर नाचते रहे। इस दौरान मेले के बीच गड़िए और दानवों के आगमन के साथ रात की दिवाली और भी रोचक हो गई। इस बीच गड़िए और दानवों के बीच हुए युद्ध ने ऋग्वेद काल में इंद्र और वृत्तासुर के बीच हुए युद्ध को दर्शाया। बताया जाता है कि अग्नि पर इंद्र और जल पर वृत्तासुर का आधिपत्य था, लेकिन वृत्र अग्नि पर भी अपना आधिपत्य करना चाहता था।
इसको लेकर दोनों के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में गड़िए इंद्र की सेना की ओर से अग्नि की रक्षा करते हैं जबकि दानव वृत्र की सेना की ओर से आक्रमण करते हैं। इस युद्ध में इंद्र की विजय को दर्शाया जाता है। बुधवार रात को निरमंड के कविरी परिवारों ने इंद्र और वृत्तासुर के बीच हुए युद्ध की गाथा अग्नि के चारों ओर फेरे लगाकर सुनाई। वहीं बांड नृत्य देखने के लिए भारी संख्या लोगों की भीड़ उमड़ी। वीरवार शाम को स्थानीय रामलीला मैदान में आयोजित होने वाले माला नृत्य में स्थानीय लोगों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया। इसके अतिरिक्त मेला कमेटी के अध्यक्ष एवं एसडीएम निरमंड मनमोहन सिंह ने खेल परिसर में लगी विभिन्न विभागों की प्रदर्शनियों का अवलोकन किया।
सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली पर्व का वीरवार से आगाज हो गया। वीरवार तड़के चार बजे ग्रामीण एक स्थान पर एकत्रित हुए और होलड़ात फूंका। होलड़ात को निचले क्षेत्रों में बड़ाराज या बलिराज भी कहा जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि बुराई व बुरी आत्माओं को गांव के बाहरजलाकर खत्म किया जाता है। इस दौरान मशालें जलाने की परंपरा भी है। शिलाई उपमंडल में मशालें जलाई गईं तो पांवटा उपमंडल के आंजभोज की 11 पंचायतोें में होलड़ात जलाकर बूढ़ी दिवाली का आगाज हुआ।
इससे पूर्व बुधवार की आधी रात को गांव के सांझे आंगन में खुली नामक गीत का गायन करने वालों के पहुंचने के साथ ही बूढ़ी दिवाली की शुरूआत हो गई थी। सप्ताह भर साजा आंगन में पारंपरिक नृत्य का दौर चलेगा। कई जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम भी शुरू हो गए हैं। इस दौरान लोगों की खूब मेहमाननवाजी होगी। लोग एक दूसरे के घर जाकर पारंपरिक व्यजंन के चटकारे लेंगे, जिसमें तेलपाकी, असकली, बेड़ोली, अखरोट, खिल,चियूड, शाकुली, पूड़े व मुड़ा सहित कई तरह पकवान मेहमानों को परोंसेंगे। बता दें कि ये पर्व देश में दीपावली के ठीक एक महीने बाद मनाया जाता है।
सदियों से चली आ रही परंपरा यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और क्षेत्र के लोग इस परंपरा का निर्वहन आज भी कर रहे हैं। छोटी अमावस, बड़ी अमावस, भिउरी, जनदुई और उशड़दी इन पांच दिनों में अलग-अलग नामों से बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है। गिरिपार क्षेत्र के कमरउ, शिल्ला, शिलाई, कांडों भटनोल, द्राबिल, खड़कांह, नैनीधार, रास्त आदि गांव में धूमधाम से बूढ़ी दीपावली मनाई जा रही है।
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हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में बूढ़ी दिवाली पर्व पूरे उल्लास के साथ मनाया गया। कुल्लू जिले में दियाली और बूढ़ी दिवाली की धूम रही है। जिले के बाह्य सराज से लेकर बंजार तक दियाली और बूढ़ी दिवाली पारंपरिक तरीके से मनाई गई। बंजार की तीर्थन घाटी की शिल्ही पंचायत के शिल्ह गांव में भी दियाली के अवसर पर 20 फीट लंबी मशालें जलाकर भूत प्रेतों को भगाया गया। दो दिनों तक मनाई दियाली में चार गांव शिल्ह, गरूली, परबाड़ी तथा शरूगंर गांव के लोगों ने भाग लेकर परंपरा को निभाया। देवता चोरल नाग शिल्ह के सम्मान में दियाली मनाई गई। इस अवसर पर ग्रामीरणों ने मशालों को लेकर न केवल भूत-प्रेत भगाए बल्कि मशालों के साथ नृत्य भी किया गया। ग्रामीण कमली राम, मेहर चंद, प्रवेश कुमार और तेजा सिंह ने कहा कि शिल्ह गांव में सदियों से देवता चोरल नाग की अगुवाई में दियाली मनाई जाती है। उन्होंने कहा कि वीरवार को देवता की अगुवाई में देवालय परिसर में लंबी-लंबी मशालों को जलाया गया। इस दौरान पारंपरिक गीतों को गाकर नृत्य किया है। वहीं बंजार के अन्य इलाकों में भी इस पर्व का आयोजन किया गया।
घास की रस्सी से की मंदिर परिसर की परिक्रमा
खुडीजल की देहुरी में बूढ़ी दिवाली देवता की गैर मौजूदगी में निशान डाहुली के साथ मनाई गई। देवता खुडीजल इन दिनों सुकीसिंअ के दौर से लौट रहे हैं। अभी देवता का रथ जाबन पहुंचा है। देवता खुडीजल मौजूद न होने पर डाहुली से सभी देव परंपराओं को निभाया गया। इस दौरान मंदिर परिसर में घास (मूंज) की बनी रस्सी को तैयार किया था। रस्सी से कोट और देहुरी गांव के ग्रामीणों ने मंदिर परिसर में तीन बार परिक्रमा की। देवता के पुजारी शशि कांत शर्मा और गूर चमन लाल ने कहा कि इस मौके पर पुजारी प्रथा के अनुसार 90 मुजारे से देवता खुडीजल महाराज की पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री को एकत्रित करते हैं। इसमें जौ, गैहूं, मक्की और घी शामिल है। बूढ़ी दिवाली के दूसरे दिन वीरवार को देव स्नान के बाद झाले का आयोजन किया गया। राजा बलि और बामन अवतार से संबंधित काव गए गए। इसके अलावा बाह्य सराज के कुईंर में देवता ब्यास ऋषि की सम्मान में बूढ़ी दिवाली मनाई गई। इस दौरान चोतरू नाग और पटारनी नाग देवता भी मौजूद रहे। कोट बूढ़ी दिवाली में देवता कोट भझारी और बंजार के बाहू के देवता भझारी का भव्य देव मिलन हुआ है। इस दौरान देवनृत्य आकर्षण का केंद्र रहा।