रंगभरी एकादशी पर विदा हुईं गौरा: विश्वनाथ के स्वर्णिम गर्भगृह में पहली बार विराजीं मां, बम-बम से गूंजी काशी

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रंगभरी एकादशी पर विदा हुईं गौरा

रंगभरी एकादशी पर विदा हुईं गौरा
– फोटो : अमर उजाला

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 बम-बम भोले, हर-हर महादेव शंभू…के जयघोष के बीच हवाओं में उड़ता हुआ गुलाल। डमरू की निनाद और शंखध्वनि की अनवरत गूंज, आसमान से लेकर जमीन तक मानो लाल रंग की चादर सी बिछ गई। हर हाथ बाबा विश्वनाथ व माता गौरा की पालकी को छूने को आतुर। टेढ़ीनीम की गलियों में ठसाठस भीड़। रंगभरी एकादशी पर माता गौरा की विदाई का उल्लास हर काशीवासी पर नजर आया। टेढ़ीनीम से निकलकर बाबा व माता गौरा की पालकी पहली बार स्वर्णमयी गर्भगृह में विराजमान हुई। काशीवासियों ने बाबा को गुलाल अर्पित करके होली खेलने की अनुमति ली और होली का उल्लास काशी में छा गया। श्री काशी विश्वनाथ के स्वर्णिम गर्भगृह में मां गौरा पहली बार विराजीं हैं।

रंगभरी एकादशी पर शुक्रवार को ब्रह्म मुहूर्त में पूर्व महंत के आवास पर गौने के अनुष्ठान आरंभ हुए। बाबा के साथ माता गौरा की चल प्रतिमा का पंचगव्य और पंचामृत स्नान के बाद दुग्धाभिषेक हुआ। दुग्धाभिषेक की विधियां पं. वाचस्पति तिवारी और संजीव रत्न मिश्र ने पूरी कराई। सुबह पांच से साढ़े आठ बजे तक 11 ब्राह्मणों ने षोडशोपचार पूजन के पश्चात फलाहार का भोग लगाकर महाआरती की। दस बजे चल प्रतिमाओं का राजसी शृंगार एवं पूर्वाह्न साढ़े ग्यारह बजे भोग आरती के बाद बाबा का दर्शन आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। गलियों में कतारबद्ध श्रद्धालु अबीर, माला और प्रसाद लेकर बाबा विश्वनाथ व माता गौरा की चल प्रतिमाओं के दर्शन के लिए पहुंच रहे थे। डमरूदल के सदस्यों ने बाबा के चरणों में डमरू निनाद से श्रद्धा अर्पित की।

 

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