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अनुच्छेद 370
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
पिछले पांच साल में नए जम्मू-कश्मीर का जन्म हुआ है। इसमें पाकिस्तान प्रायोजित पत्थरबाजी व हड़ताल बीते दिनों की बात हो गई है। अलगाववाद हाशिये पर है। आतंकी घटनाओं में काफी कमी आई है। हालांकि, पाकिस्तान की ओर से बार-बार जम्मू-कश्मीर में अमन-चैन को खराब करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन अपने मंसूबे में वह कामयाब नहीं हो पा रहा है।
अब तो सक्रिय अलगाववादी भी मुख्यधारा में लौटने लगे हैं। कई ने मुख्यधारा की पार्टियों का दामन थाम लिया है। इस चुनाव में अलगाववादी नेता भी चुनाव प्रचार करते और अवाम से वोट मांगते नजर आ सकते हैं। इस बदली आबोहवा में लोकसभा चुनाव कई मायने में महत्वपूर्ण होंगे।
बदली परिस्थितियों में जो सबसे बड़ा बदलाव आया वह यह है कि जो कभी भारत के नारे नहीं लगाते थे, जिनका भारतीय झंडे पर विश्वास नहीं था, वे भी अब अलगाववाद को छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने लगे हैं। हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता रहे जफर हबीब डार अपनी पार्टी में शामिल हो गए हैं। वह कट्टरपंथी सैय्यद अली शाह गिलानी के हुर्रियत कांफ्रेंस में दूसरी पंक्ति के नेता थे।
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