विश्व पृथ्वी दिवस: जब महराज जी के लगाए पौधे सूख गए, बाकी को कौन पूछे

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वन विभाग के किताबी आंकड़ों के अनुसार, 2019 के बाद से लगातार पौधे रोपे जाने की संख्या में बढोतरी हुई है। दावा हैं कि वर्ष-2018 में 5,29,664 लाख पौधे, वर्ष-2019 में 10,44,917 लाख, वर्ष-2020 में 15,34,170 लाख, वर्ष 2021 में 16,48,900 लाख पौधे और वर्ष -2022 में 900 हेक्टेयर में 19,10,990 लाख पौधे रोपे गए हैं। इनमें वन विभाग ने शहर के अलावा आसपास के वन क्षेत्र, पार्क, सार्वजनिक स्थलों पर पौधरोपण का दावा किया है।

विशेषज्ञों के अनुसार, देखरेख के बाद भी 20 प्रतिशत पौधे मौसम और अन्य कारणों से नुकसान हो जाते हैं। इस क्षति को शामिल कर लें, तो भी दावे जमीन पर नजर नहीं आते।

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जहां पौधरोपण किया भी गया, जिम्मेदार औपचारिकता निभा कर भूल गए। जबकि, नियम होता है कि वन विभाग या जिन विभागों को पौधे दिए जाते हैं, उन्हें समय-समय पर रोपे गए पौधों की निगरानी करनी होती है। जहां जरूरत पड़े, ट्री गार्ड लगाकर उन्हें सुरक्षित किया जाता है। जिम्मेदार इस तरफ ध्यान देते तो जिले में हरियाली का नजारा कुछ और होता। विश्व पृथ्वी दिवस के दिन हरियाली ढूंढने पर वन विभाग के मुहिम की विफलता साफ नजर आती है।

अब सिर्फ नाम हैं, पेड़-पौधे गायब

गोरखपुर प्रभाग में पेड़ों के नाम पर कई इलाके बसे हैं। रानीबाग, अमरुतानी, जमुनिया, पकड़ी, अर्जुनही, कटहरा, बरगदवां आदि इसमें शामिल हैं। वर्तमान में सिर्फ इन इलाकों-गावों का नाम रह गया, पेड़ खोजे नहीं दिखते। वन विभाग के रिकार्ड में इन नामों का जिक्र तो है, लेकिन इनके नाम वाले पौधे रोपने या रोपे गए पौधों के संरक्षण की चिंता नहीं है।

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