सद्गुरु ज्ञान : असुर शब्द एक विशिष्ट शक्ति का है द्योतक

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‘असुर’ शब्द ऋग्वेद में लगभग सौ से अधिक बार आया है. नब्बे बार यह सकारात्मक रूप में प्रयुक्त हुआ और और बहुत कम जगह यह देवों के विरोधी के रूप में इस्तेमाल हुआ. सामान्य रूप में समझें तो असुर शब्द एक विशिष्ट शक्ति का द्योतक है, पर न जाने कब सुर यानी देवताओं के विरोधियों को असुर कहा गया. कुछ मान्यताओं के अनुसार, सुर यानी सुरा का सेवन करने वाला और असुर अर्थात् सुरा को अग्राह्य समझने वाला.

कई ग्रंथों में असुरों को तो बार-बार उत्कृष्ट गुणों से युक्त, शक्तिशाली, और अर्धदेवों के अलंकार से भी नवाजा गया है. सदगुणों वाले असुर अदित्य कहलाये और दुर्गुण वाले दानव.

उपाय, जो जीवन बदले

गृहकलह को दूर करने के लिए कपूर को देसी गाय के घी में भिगोकर दिन में दो बार प्रज्ज्वलित करें और उसे पूरे घर में घुमाएं. मान्यताएं कहती हैं कि इससे नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास होगा और गृह-क्लेश को दूर करने में मदद मिलेगी.

प्रेरक संदेश

जे हउ जाणा आखा नाही । कहणा कथनु न जाई ।।

अर्थात् : गुरु नानक जी कहते हैं कि इस संसार में ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है, जो ईश्वर की ज्योति को जान लेने पर उसे शब्दों में व्यक्त कर सके! वह तो कथन से परे है, जिसे केवल हृदय में अनुभव किया जा सकता है.

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