सर्वप्राचीन मेले में एक है गयाजी का पितृपक्ष मेला

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पितृ मोक्ष धाम गया में प्रत्येक वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक पितृपक्ष मेला का आयोजन होता है. निरंजना और मोहाने जैसे दो पठारी नदियों में गुप्त सरस्वती ‘विशाला’ के महासंगम के उपरांत उद्गमित अंत: सलिला फल्गु के किनारे गयाजी में पितृपक्ष मेला युग पिता ब्रह्माजी द्वारा प्रारंभ किया गया बताया जाता है. इस तरह यह संसार के सर्वप्राचीन मेले में एक है.

पितृपक्ष का 15 दिवसीय मेला न सिर्फ गया अथवा समिति खंड मगध के कारण, बल्कि पूरे बिहार के प्रसिद्ध धार्मिक सन ऑफ समागम में एक है. बिहार में सोनपुर का मेला, श्रावणी मेला, मलमास का मेला, मंदार महोत्सव, छठ पूजा मेला जैसे प्रसिद्धि प्राप्त मेले की भांति गया के पितृपक्ष मेले का दूर देश तक नाम है. आस्था, विश्वास और जनसरोकार से जुड़े गया के पितृपक्ष मेला को वर्ष 2014 में राजकीय मेले का दर्जा दिया गया.

कई अर्थों में गया का पितृपक्ष मेला न सिर्फ धार्मिक वरन् सामाजिक, आर्थिक और जन-जन की भावनाओं से जुड़ा है. मेले के हरेक दिन अलग-अलग वेदियों पर अनुष्ठान का विधान है. इन पंद्रह दिनों में गया धाम की सभी पिंड वेदियों का पितृ कर्म किया जाता है और इसकी पूर्णाहुति अक्षयवट में होती है. कभी गया जी में 360 वेदियां थीं, पर वर्तमान में इनकी संख्या 50 के करीब हैं.

इनमें श्री विष्णु पद, फल्गु जी और अक्षय वट का विशेष मान है और इन्हीं तीनों स्थानों पर श्रद्धालुओं का सर्वाधिक जमावड़ा होता है. मान्यता है कि मोक्ष प्राप्ति की भावना से ओतप्रोत गयाजी का पितृपक्ष मेला स्वर्गारोहण के द्वार का मार्ग प्रशस्त करता है, तभी तो गया में सालों भर पितृ भक्तों का आगमन बना रहता है.

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