हाईकोर्ट ने कहा : केस सुनवाई में देरी के लिए संशोधन अर्जी मंजूर न करें अदालतें

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High Court said: Courts should not accept amendment application for delay in case hearing

allahabad high court
– फोटो : social media

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश छह नियम 17 के अंतर्गत अदालत उचित कारण पर किसी भी पक्ष को अपने केस के कथन को संशोधित करने की अनुमति देने का विस्तृत विवेकाधिकार है। किंतु, किसी संशोधन को स्वीकार या अस्वीकार करने के विधि सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए। ताकि, अदालत के विवेकाधिकार का इस्तेमाल केस की सुनवाई अनावश्यक रूप से टालने के लिए न हो सके।

 

कोर्ट ने कहा कि यह देखा जाय कि क्या वाद संशोधन केस की उचित व प्रभावी सुनवाई के लिए जरूरी है। क्या अर्जी सदाशयता पूर्ण है या दुर्भावना पूर्ण। संशोधन से दूसरे पक्ष को ऐसा नुकसान तो नहीं हो रहा जिसकी धन से भरपाई नहीं की जा सकती। संशोधन से इंकार अन्याय या मुकद्दमेबाजी को बढ़ावा तो नहीं देगा। क्या संशोधन केस की प्रकृति को बदल तो नहीं देगा। संशोधित दावा मियाद बाधित है, तो कोर्ट इंकार कर सकती है। अदालत न्याय हित में जरूरी होने पर संशोधन की मंजूरी कभी भी दे सकती है।

कोर्ट ने वर्तमान मामले में वाद दाखिल होने के नौ साल बाद सुनवाई में देरी की मंसा से दाखिल संशोधन अर्जी निरस्त करने को अनुचित नहीं माना। इसके साथ ही याचिका खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने दरभंगा कालोनी प्रयागराज की श्रीमती नीता अग्रवाल की याचिका पर दिया है।

 

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