हिमाचल: माइनस डिग्री तापमान में जमने लगे झीलें-झरने और पेयजल पाइप

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दीपकताल झील

दीपकताल झील
– फोटो : संवाद

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मनाली-लेह मार्ग पर स्थित दीपकताल झील का पर्यटक अब मई 2024 के बाद ही नजारा देख सकेंगे। केलांग से 43 किलोमीटर दूर झील माइनस तापमान में जम गई है। यह झील समुद्रतल से 3,750 मीटर की ऊंचाई पर है। मानसून में हिम नदियों के पिघलने से यह झील पोषित होती है। अब बर्फ से ढकी चोटियों के बीच इस झील का पानी पूरी तरह से जम गया है।  अप्रैल के बाद झील पर फिर रौनक लौटेगी। दीपकताल प्रदेश की एक आकर्षित झील है। यह झील केलांग से 43 और जिस्पा से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। मनाली-लेह मार्ग पर यात्रा करने वाले लोगों के लिए यह एक पड़ाव के रूप में कार्य करती है। उल्लेखनीय है कि लाहौल में बर्फबारी के बाद लगातार गिरते तापमान के बीच पहाड़ियों से झरने, झीलों का पानी जम गया है।

घाटी की चंद्रताल, सूरजताल, दीपकताल, नीलकंठ समेत दूसरी झीलों का पानी जम गया है। अत्यधिक ठंड से पहाड़ की बात तो छोड़िए, रिहायशी इलाकों में लोगों के घरों में लगे 90 फीसदी से अधिक नल भी पूरी तरह से जम चुके हैं। उधर, पहाड़ में पानी जमते ही वन्य जीव-जंतुओं की भी मुश्किलें बढ़ गई हैं। उन्हें प्यास बुझाने के लिए रिहायशी इलाकों के समीप नदी-नालों का रुख करना पड़ रहा है। उपायुक्त लाहौल-स्पीति सुमित खिमटा ने कहा कि पहाड़ों में अत्यधिक ठंड के चलते झरने-झीलें जम गए हैं। उन्होंने घाटी में आने वाले पर्यटकों को ऊंचाई वाले क्षेत्रों और नदी-नालों के समीप न जाने की अपील की है।

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मनाली-लेह मार्ग पर स्थित दीपकताल झील का पर्यटक अब मई 2024 के बाद ही नजारा देख सकेंगे। केलांग से 43 किलोमीटर दूर झील माइनस तापमान में जम गई है। यह झील समुद्रतल से 3,750 मीटर की ऊंचाई पर है। मानसून में हिम नदियों के पिघलने से यह झील पोषित होती है। अब बर्फ से ढकी चोटियों के बीच इस झील का पानी पूरी तरह से जम गया है।  अप्रैल के बाद झील पर फिर रौनक लौटेगी। दीपकताल प्रदेश की एक आकर्षित झील है। यह झील केलांग से 43 और जिस्पा से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। मनाली-लेह मार्ग पर यात्रा करने वाले लोगों के लिए यह एक पड़ाव के रूप में कार्य करती है। उल्लेखनीय है कि लाहौल में बर्फबारी के बाद लगातार गिरते तापमान के बीच पहाड़ियों से झरने, झीलों का पानी जम गया है।

घाटी की चंद्रताल, सूरजताल, दीपकताल, नीलकंठ समेत दूसरी झीलों का पानी जम गया है। अत्यधिक ठंड से पहाड़ की बात तो छोड़िए, रिहायशी इलाकों में लोगों के घरों में लगे 90 फीसदी से अधिक नल भी पूरी तरह से जम चुके हैं। उधर, पहाड़ में पानी जमते ही वन्य जीव-जंतुओं की भी मुश्किलें बढ़ गई हैं। उन्हें प्यास बुझाने के लिए रिहायशी इलाकों के समीप नदी-नालों का रुख करना पड़ रहा है। उपायुक्त लाहौल-स्पीति सुमित खिमटा ने कहा कि पहाड़ों में अत्यधिक ठंड के चलते झरने-झीलें जम गए हैं। उन्होंने घाटी में आने वाले पर्यटकों को ऊंचाई वाले क्षेत्रों और नदी-नालों के समीप न जाने की अपील की है।



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