1971 के युद्ध की कहानी, वीर सैनिकों की जुबानी: मेजर जनरल खाती ने बहादुरी की स्याही से लिखी थी गौरव गाथा

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मेजर जनरल प्रकाश खाती

मेजर जनरल प्रकाश खाती
– फोटो : अमर उजाला

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पहाड़ के बेटे ने 51 साल पहले तीन दिसंबर 1971 की रात पाकिस्तानी सेना की तीन कंपनियों के हमले को 36 जवानों के साथ नाकाम कर दिया था। मेजर जनरल प्रकाश खाती उस समय सेकेंड लेफ्टिनेंट थे और 4/1 गोरखा राइफल्स में प्लाटून कमांडर थे, जो छंब सेक्टर में झंडा पोस्ट की रक्षा कर रहे थे। 

मेजर (सेवानिवृत्त) बीएस रौतेला बताते हैं कि मेजर खाती को पाकिस्तान के नापाक इरादों का इनपुट था इसलिए वह अपने जवानों साथ पहले से सतर्क थे। अंधेरा होते ही दुश्मन सेना ने तोपों और भारी गोली बारी शुरू की तो वह एक बंकर से दूसरे बंकर चले गए और अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाते हुए हमले को नाकाम कर दिया।

अगले दिन उनके क्षेत्र में दुश्मन ने चार बार हमला किया लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी। दुश्मन की हर कोशिश को उन्होंने विरासत में मिली युद्ध कुशलता की अनोखी मिशाल पेश की और दुश्मन की पैदल सेना और बख्तरबंद गाड़ियों को भारी नुकसान पहुंचाया। उनकी बहादुरी, कुशल नेतृत्व के लिए उन्हें वीरता पुरस्कार वीर चक्र से सम्मानित किया गया। अपनी 40 वर्ष के सेवाकाल में जनरल खाती ने अभूतपूर्व बहादुरी का परिचय दिया।

उन्होंने सियाचिन जैसे दुर्गम क्षेत्र में सफलतापूर्वक कमान संभाली और जम्मू और कश्मीर में बिग्रेड कमान की। पूंछ-राजौरी सेक्टर में आतंकवादियों के विरुद्ध ऑपरेशन सर्वविनाश चलाकर आतंकियों के कई ठिकानों को नष्ट किया। इस बहादुरी के लिए उन्हें सेना मेडल से नवाजा गया। इंफेंट्री स्कूल में डिप्टी कमाडेंट और मुख्य प्रशिक्षक पदों पर रहने के बाद मेजर जनरल खाती सेवानिवृत्त हुए। वर्तमान में मजखाली (रानीखेत) में रह रहे हैं और बच्चों, युवाओं को जागरूक नागरिक बना रहे हैं। 

(विजय दिवस 16 दिसंबर तक रोज पढ़ें 71 के युद्ध के वीर जवानों की गौरव गाथा)

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पहाड़ के बेटे ने 51 साल पहले तीन दिसंबर 1971 की रात पाकिस्तानी सेना की तीन कंपनियों के हमले को 36 जवानों के साथ नाकाम कर दिया था। मेजर जनरल प्रकाश खाती उस समय सेकेंड लेफ्टिनेंट थे और 4/1 गोरखा राइफल्स में प्लाटून कमांडर थे, जो छंब सेक्टर में झंडा पोस्ट की रक्षा कर रहे थे। 

मेजर (सेवानिवृत्त) बीएस रौतेला बताते हैं कि मेजर खाती को पाकिस्तान के नापाक इरादों का इनपुट था इसलिए वह अपने जवानों साथ पहले से सतर्क थे। अंधेरा होते ही दुश्मन सेना ने तोपों और भारी गोली बारी शुरू की तो वह एक बंकर से दूसरे बंकर चले गए और अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाते हुए हमले को नाकाम कर दिया।

अगले दिन उनके क्षेत्र में दुश्मन ने चार बार हमला किया लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी। दुश्मन की हर कोशिश को उन्होंने विरासत में मिली युद्ध कुशलता की अनोखी मिशाल पेश की और दुश्मन की पैदल सेना और बख्तरबंद गाड़ियों को भारी नुकसान पहुंचाया। उनकी बहादुरी, कुशल नेतृत्व के लिए उन्हें वीरता पुरस्कार वीर चक्र से सम्मानित किया गया। अपनी 40 वर्ष के सेवाकाल में जनरल खाती ने अभूतपूर्व बहादुरी का परिचय दिया।

उन्होंने सियाचिन जैसे दुर्गम क्षेत्र में सफलतापूर्वक कमान संभाली और जम्मू और कश्मीर में बिग्रेड कमान की। पूंछ-राजौरी सेक्टर में आतंकवादियों के विरुद्ध ऑपरेशन सर्वविनाश चलाकर आतंकियों के कई ठिकानों को नष्ट किया। इस बहादुरी के लिए उन्हें सेना मेडल से नवाजा गया। इंफेंट्री स्कूल में डिप्टी कमाडेंट और मुख्य प्रशिक्षक पदों पर रहने के बाद मेजर जनरल खाती सेवानिवृत्त हुए। वर्तमान में मजखाली (रानीखेत) में रह रहे हैं और बच्चों, युवाओं को जागरूक नागरिक बना रहे हैं। 

(विजय दिवस 16 दिसंबर तक रोज पढ़ें 71 के युद्ध के वीर जवानों की गौरव गाथा)



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