2024 Election : पशुपति पारस और चिराग पासवान की लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर, खगड़िया लोकसभा सीट चर्चा में क्यों

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खगड़िया लोकसभा सीट चर्चा में है।
– फोटो : अमर उजाला

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लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक दिवंगत राम विलास पासवान फिर चर्चा में हैं। उनके बेटे और जमुई के लोजपा सांसद चिराग पासवान तो लंबे समय से अपने पिता को चर्चा में रखते ही हैं, इस समय भाई पशुपति कुमार पारस के कारण भी पासवान चर्चा में हैं। पासवान के निधन के बाद दो टुकड़ों में बंटी उनकी पार्टी लोजपा के दोनों हिस्से के बीच 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सीट बंटवारे पर उठापटक के बीच पलटासन के कारण खगड़िया चर्चा में है। खगड़िया के लोजपा सांसद महबूब अली कैसर केंद्रीय मंत्री और लोजपा (राष्ट्रीय) के प्रमुख पशुपति कुमार पारस को छोड़ लोजपा (रामविलास) के सर्वेसर्वा चिराग पासवान का रुख कर बैठे हैं। पारस दिवंगत बड़े भाई की हाजीपुर सीट भतीजे के लिए छोड़ना नहीं चाह रहे और इधर खगड़िया सांसद के पलटासन ने उन्हें चिंता में डाल दिया है।

चिराग-पारस में समझौते का खुलासा बाकी

चिराग की पार्टी के नेता कह रहे हैं कि पारस ने हाजीपुर सीट छोड़ने की बात मान ली है और एनडीए से उन्हें गवर्नर पद का ऑफर है। दूसरी तरफ यह बताया जा रहा है कि एनडीए में बने रहने की मजबूरी होने पर पारस हाजीपुर सीट छोड़ते भी हैं तो अपने गृह जिला खगड़िया का रुख करना उनकी मजबूरी भी होगी और पसंद भी। ऐसे में लोजपा के मौजूदा सांसद महबूब अली कैसर की जगह खुद खड़ा होना उनके लिए आसान होता। कैसर समेत लोजपा के बाकी सांसदों ने जैसे ऐन मौके पर पिछली बार चिराग पासवान का साथ छोड़ा था, अब पशुपति पारस के साथ वैसा ही होता दिख रहा है। कैसर चिराग के प्रति समर्पण का भाव लिए दिल्ली में दिख चुके हैं और अब यह मान लिया जा रहा है कि वह पारस गुट से पलट कर चिराग की तरफ जाने को पूरी तरह तैयार हैं। ऐसे में उनकी खगड़िया सीट चर्चा में है।

क्या है खगड़िया का माहौल अभी

छह विधानसभा क्षेत्र से बना खगड़िया लोकसभा सीट 2024 के लोकसभा चुनाव में दूसरी तरह का अखाड़ा बनेगा। यादव बहुल इस लोकसभा सीट पर इसबार महागठबंधन और एनडीए की आमने-सामने की भिड़ंत होगी। ताजा घटनाक्रम से पहले ही खगड़िया से कई दावेदार ताल ठोक रहे थे। कहा जा रहा था कि दो बार लोजपा से सांसद बने चौधरी महबूब अली कैसर को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। एनडीए के अंदर एका का संकट भी कई बार जगजाहिर हो चुका है। दावेदारी को लेकर खींचतान भी साफ दिख रही है। कैसर अपनी दावेदारी कायम रखने के लिए पाला बदल रहे हैं तो पारस अपना राजनीतिक वजूद कायम रखने के लिए यहां से उतरने का अंतिम फैसला कर सकते हैं। लोजपा के अंदर की इस लड़ाई से बाहर भाजपा के कई नेता खगड़िया पर दांव खेलने के लिए प्रयासरत हैं। इसके अलावा अगर सीट बंटवारे तक एनडीए में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) की एंट्री हो गई तो वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी भी इस सीट के लिए सोच सकते हैं।

मुकेश सहनी खेल चुके हैं यहां दांव

लगातार दो बार खगड़िया लोकसभा सीट से लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चौधरी महबूब अली कैसर सांसद हैं। साल 2014 के चुनाव में उन्होंने यह सीट राष्ट्रीय जनता दल की कृष्णा कुमारी यादव को 76,003 वोटों से हराकर हासिल की थी। वहीं, 2019 में चौधरी महबूब अली कैसर ने वीआईपी के मुखिया मुकेश सहनी को 2,48,570 वोटों से पटखनी दी थी। लगभग आधा वोट आया था सहनी को।

महागठबंधन में भी अंदरूनी कलह, कई दावेदार

खगड़िया लोकसभा सीट से जहां एनडीए में संशय की स्थिति है, वहीं वहीं महागठबंधन में भी सबकुछ ठीक नहीं है। पिछली बार महागठबंधन की तरफ से मुकेश सहनी ने अपना भाग्य आजमाया था, वहीं इस बार वह औपचारिक घोषणा के पहले की डील में अटके हैं। इधर इस सीट पर राजद और कांग्रेस ने अपनी-अपनी दावेदारी ठोक दी है। राजद की तरफ से इसबार जिला अध्यक्ष मनोहर यादव को प्रत्याशी बनाने की मांग उठ रही है, वहीं 2014 में दूसरे नंबर पर रहीं राजद प्रत्याशी कृष्णा कुमारी यादव भी पार्टी से यह सीट लेने के लिए प्रयासरत हैं। कांग्रेस के कई नेता प्रयासरत हैं, लेकिन वह खगड़िया की सरजमीं पर आकर दावा नहीं कर रहे हैं।

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