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शुक्रवार की आधी रात पटना एम्स में रक्तदान करते महाराष्ट्र के माधव मारोतीराव स्वर्णकार।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
14 साल की बच्ची के लिए रेयरेस्ट ऑफ रेयर ब्लड ग्रुप ‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’ की फिर जरूरत पड़ गई। पिछली बार मां ब्लड सेंटर ने मुंबई से प्लाइट के जरिए इस ब्लड ग्रुप को मंगाकर बच्ची के परिजनों को सौंपा था। तब डेंगू से पीड़ित बच्ची का हीमोग्लोबिन मात्र 3 ग्राम था। अब एक बार फिर एम्स में भर्ती बच्ची को शरीर में पर्याप्त खून नहीं बनने की शिकायत के कारण फिर से दरकार पड़ी तो महाराष्ट्र से इस ग्रुप के डोनर पटना आए। उन्होंने शुक्रवार-शनिवार की मध्यरात्रि बच्ची के लिए रक्तदान किया।
दरभंगा, मैसूर, चेन्नई, मुंबई…सभी का योगदान
एम्स में भर्ती बच्ची 14 साल की बच्ची के अम्मी-अब्बू पिछली बार परेशान थे तो मां ब्लड सेंटर ने रिक्वेस्ट लेटर के साथ आए सैंपल को मैच कराने के क्रम में पाया कि यह खून बॉम्बे ब्लड ग्रुप का है। इसके बाद दो यूनिट खून मंगाकर एम्स को दिया गया। इस बार एम्स को ब्लड ग्रुप पता था, लेकिन उसके पास इस ग्रुप के खून का इंतजाम नहीं था। ऐसे में अलग-अलग माध्यमों से यह जानकारी दरभंगा की स्मिता वर्षा झा को पहुंची। उन्होंने प्रयास शुरू किया और फिर मैसूर के देवेंद्र परिहारिया, चेन्नई की श्रीवत्स वेमा और मुंबई में विनय शेट्टी से संपर्क होते-होते यह सामाजिक प्रयास नान्देड़ (महाराष्ट्र ) के माधव मारोतीराव स्वर्णकार तक पहुंचा। वह तैयार हो गए और दो दिनों की ट्रेन यात्रा के बाद वह शुक्रवार की आधी रात पटना पहुंचे और एम्स में रक्दान किया। रेयरेस्ट ऑफ रेयर ग्रुप के खून वाले 37 साल के मारोतीराव स्वर्णकार ने अपना 61वां रक्तदान किया। 140 करोड़ के हमारे देश में बॉम्बे ब्लड ग्रुप के 400 के करीब रजिस्टर्ड डोनर हैं।
1952 में बॉम्बे में हुई खोज, इसलिए नाम
इस ब्लड ग्रुप का केस जल्दी नहीं आता है और शायद पहचान नहीं होने के कारण गलत खून चढ़ाए जाने या मिसमैच होने के कारण जान तक चली जाती होगी। इस बच्ची के केस में भी यह हो रहा था। उसे ओ ग्रुप का माना जा रहा था और एम्स आने के पहले उसे इस ग्रुप का ब्लड चढ़ाने का प्रयास भी किया गया था। एम्स में जब ओ ग्रुप के खून से बच्ची का खून मैच नहीं किया तो मामला मां ब्लड सेंटर पहुंचा और यहां सेवा दे रहे पीएमसीएच ब्लड बैंक के पूर्व प्रभारी डॉ. यूपी सिन्हा ने जांच कर बॉम्बे ब्लड ग्रुप का खून होने की जानकारी दी थी। इस ग्रुप के बारे में पूछे जाने पर कई डॉक्टरों ने जानकारी दी- “Bombay Blood Group को hh blood group भी कहा जाता है। यह एक दुर्लभ रक्त फेनोटाइप है। इसकी खोज 1952 में डॉ. वाई. एम. भेंडे ने की थी। चूंकि यह खोज तत्कालीन बॉम्बे में हुई थी, इसलिए इसे बॉम्बे ब्लड ग्रुप ही ज्यादा कहा जाता है। मेडिकल की किताबों में बताया गया है कि यह रक्त फेनोटाइप अधिकतर भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और मध्य-पूर्व क्षेत्र के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। करीब 40 लाख लोगों में से कोई एक Bombay Blood Group या HH blood group का निकलता है। इस ग्रुप की पहचान भी आसान नहीं है, इसलिए ऐसे मरीजों को कई तरह का खतरा रहता है। माना जाता है कि भारत में साढ़े सात हजार से 10 हजार लोगों में से एक व्यक्ति इस समूह का रक्त लिए पैदा होता है।”
महाराष्ट्र से आए मोतीराव का खुलकर स्वागत
आमतौर पर इंसानों में A+, B+, AB+, 0+ या A-, B-, AB-, 0- जैसे ब्लड ग्रुप पाए जाते हैं, लेकिन यह दुर्लभों में भी दुर्लभ ब्लड ग्रुप है। ब्लड मैन के नाम से मशहूर और इसी कारण केबीसी की हॉट सीट तक बुलाए गए समाजसेवी मुकेश हिसारिया कहते हैं- “बहुत कम लोगों के शरीर में पाए जाने के कारण इसे गोल्डन ब्लड भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम आर.एच. नल ब्लड ग्रुप (Rh Null Blood Group) है। यह ब्लड ग्रुप सिर्फ उस व्यक्ति के शरीर में मिलता है जिसका Rh फैक्टर Null (Rh-null) होता है। ऐसे में बिहार की बच्ची की जान बचाने के लिए महाराष्ट्र से आए मारोतीराव स्वर्णकार का हम खुले दिल से स्वागत करते हैं। उनका आभार प्रकट करते हैं। उन्होंने यह संदेश भी दिया है कि अगर आप किसी भी तरह सक्षम हैं तो समाज के लिए योगदान के सैकड़ों रास्ते हैं। यह उनके लिए भी जवाब है, जो रक्त को धर्म के दायरे में बांधते हैं। मोतीराव ने बच्ची का धर्म जानने के बावजूद एक बार भी हिचक नहीं दिखाई।”
किस तरह के लोगों में इस ब्लड ग्रुप का डर
मेडिकल जर्नल के अनुसार, दक्षिण एशिया में इस ब्लड ग्रुप के लोग ज्यादा हैं। सजातीय प्रजनन (Inbreeding) और करीबी समुदायों में विवाह से इस ग्रुप के रक्त वाले बच्चे होने का डर रहता है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि के उन इलाकों में ऐसे रक्त समूह वाले बच्चों का जन्म ज्यादा होता है, जहां एक ही वंश की किसी पीढ़ी या उसी पीढ़ी के दो युगल विवाह करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, चार रक्त समूह A, B, AB और O सबसे सामान्य हैं। इनमें भी निगेटिव टाइप का मिलना मुश्किल होता है। ओ ग्रुप और बॉम्बे ब्लड ग्रुप की पहचान में कई बार भ्रम होता है। ओ समूह में एंटीजन एच होता है, जबकि बॉम्बे ब्लड ग्रुप में कोई एंटीजन नहीं होता है। ओ ग्रुप का खून चढ़ाने पर बॉम्बे ब्लड ग्रुप के मरीज की जान खतरे में आ जाती है, दूसरी तरफ इस ग्रुप का व्यक्ति A, B, O रक्त समूह के लिए रक्तदान कर सकता है।
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