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में पंडोह बाइपास टकोली प्रोजेक्ट टनल।
– फोटो : संवाद
विस्तार
किरतपुर-मनाली फोरलेन में पंडोह बाइपास टकोली प्रोजेक्ट में बनीं और निर्माणाधीन टनलें डबल ट्यूब हैं। हर 300 से 500 मीटर पर दोनों टनलें आपस में जुड़ी हुई हैं। इसके चलते किसी भी अनहोनी की स्थिति में टनल से किसी को भी आसानी से सुरक्षित बाहर निकाला जा सकता है। एक टनल बंद होने पर क्रॉस पैसेज सुरंग होने पर दूसरी टनल से आसानी से बाहर निकला जा सकता है। इसके अलावा भी यहां कई अन्य सुरक्षा मानकों को अपनाते हुए काम किया जा रहा है।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन टनल का एक हिस्सा ढहने के चलते 41 मजदूर करीब आठ दिनों से फंसे हुए हैं। इनमें मंडी जिले का विशाल भी शामिल हैं। किरतपुर-मनाली फोरलेन में मंडी जिले में सुरंगों का जाल बिछ गया है। अकेले पंडोह बाइपास टकोली प्रोजेक्ट में कुल 10 में से 8 टनलें बनकर तैयार हो गई हैं। इनमें से पांच में यातायात चल रहा है। दो टनल में इन दिनों खोदाई कार्य चल रहा है। एक-एक किलोमीटर लंबी दोनों टनल की खोदाई न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग विधि (एनएटीएम) के अनुसार हो रही है। दोनों टनल की खोदाई समानांतर चलने के साथ हर 300 से 500 मीटर पर दोनों टनलें आपस में जुड़ी हुई हैं।
यदि कोई आपातकालीन स्थिति पैदा होती तो यहां से दूसरी टनल में होकर आसानी से बाहर निकाला जा सकता है। इसके अलावा टनल खोदाई के दौरान एग्जॉस्ट, सुरक्षा संबंधी सभी उपकरण और एंबुलेंस उपलब्ध करवाई गई है। ताकि किसी भी आपात स्थिति में तुरंत प्राथमिक उपचार दिया जा सके और एंबुलेंस के जरिये मरीज को रेफर किया जा सके। वहीं, आपातकालीन स्थिति को दर्शाते हुए भी मॉकड्रिल करवाई जा रही है। यह कार्य नियमित रूप से करवाते हुए मजदूरों को जागरूक किया जा रहा है। ताकि आपातकाल में घबराने के बजाए सही तरीके से मजदूर खुद को बचा सकें।
मंडी शहर बाइपास के लिए बन रहीं चार टनलें
मंडी शहर में बाइपास के लिए चार टनलें बन रही हैं। यह टनलें 3,600 मीटर लंबी हैं। जबकि मंडी-पंडोह और पंडोह से कैंची मोड़ के बीच भी दो टनल निर्माण प्रस्तावित है। बता दें कि पंडोह बाइपास टकोली प्रोजेक्ट में टनल निर्माण के दौरान मलबा आने की छोटी घटनाएं हुई हैं, लेकिन जानमाल का कोई नुकसान रिपोर्ट नहीं हुआ है।
सभी सुरक्षा मानकों को अपनाते हुए ही टनल खोदाई की जा रही है। पंडोह बाइपास टकोली प्रोजेक्ट में बन रही टनलें डबल ट्यूब हैं और क्रॉस पैसेज भी हैं। इससे यह टनल किसी भी तरह की अनहोनी पर अंदर फंसे लाेगों को आसानी से बाहर सुरक्षित निकाला जा सकता है। -वरूण चारी, परियोजना निदेशक, एनएचएआई।
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