HP High Court: हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया प्राथमिक शिक्षा निदेशक को पाया अवमानना का दोषी

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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्राथमिक शिक्षा निदेशक को प्रथम दृष्टया अवमानना का दोषी पाया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने निदेशक की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि कठोर आदेश पारित करने से पहले अपने निर्णय की अनुपालना के लिए एक मौका दिया जाता है। ऐसा न करने पर अदालत ने प्रतिवादी मनीष गर्ग को 8 दिसंबर 2022 के लिए तलब किया है।  न्यायाधीश शर्मा ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि प्राथमिक शिक्षा निदेशक ने निर्णय लागू करने के बजाय मामले को जटिल बनाने की कोशिश की है। अदालत ने पाया कि खंडपीठ ने 9 मई 2022 को पूर्व सैनिकों के हक में निर्णय सुनाया था। अभी तक इस निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक नहीं लगाई है। ऐसी स्थिति में प्रतिवादी के पास अदालत के निर्णय को लागू करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है।

अदालत ने निदेशक को नसीहत देते हुए कहा कि अवमानना याचिका में निर्णय लागू करने के सिवा और कोई चारा नहीं होता है। यदि अदालत का निर्णय गलत लगता है तो उस स्थिति में उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। निदेशक ने शपथपत्र के माध्यम से बताया था कि अदालत के निर्णय को लागू नहीं किया जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व सैनिकों को दिए जाने वाले वित्तीय लाभ के मामले में स्थिति स्पष्ट की है। ऐसा प्रतीत होता है कि निर्णय सुनाते समय हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से अवगत नहीं करवाया गया था। ऐसा न करने से हाईकोर्ट ने गलत निर्णय सुनाया है, जिसे लागू नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पूर्व सैनिकों के हक में फैसला सुनाया था। अदालत ने उनकी सैन्य सेवाओं को वेतन निर्धारण के लिए गिने जाने के आदेश दिए थे। छह महीने बीत जाने के बाद भी शिक्षा विभाग ने इस निर्णय पर अमल नहीं किया। मजबूरन याचिकाकर्ता को निर्णय लागू करने के लिए अवमानना याचिका दायर करनी पड़ी। 

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एमबीबीएस सीट आवंटन मामले में अटल मेडिकल विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक को तलब किया है। मुख्य न्यायाधीश एए सैयद और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 5 दिसंबर को निर्धारित की है। याचिकाकर्ता दिव्येश चौहान एमएमयू में एमबीबीएस के प्रथम वर्ष के छात्र हैं। इन्होंने आरोप लगाया है कि अटल मेडिकल विवि ने एमबीबीएस सीट आवंटन करते समय नियमों का पालन नहीं किया है।

वरीयता को दरकिनार कर मैनेजमेंट से स्टेट कोटे में गलत तरीके से तबदील किए जाने का आरोप लगाया गया है। इन आरोपों का स्पष्टीकरण न देने पर अदालत ने परीक्षा नियंत्रक डॉक्टर प्रवीण शर्मा को अदालत के समक्ष पेश होने के आदेश दिए हैं। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि जब अरुंधती शर्मा, शालिनी मनकोटिया और मृगंक सूद को मॉप अप राउंड में मैनेजमेंट से स्टेट कोटे में तबदील किया गया था तो उनसे अधिक वरीयता वाली प्रगति पंवर को यह लाभ क्यों नहीं दिया गया। अदालत ने इसके स्पष्टीकरण के लिए अटल मेडिकल विवि के परीक्षा नियंत्रक की उपस्थिति को जरूरी समझा है। 

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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्राथमिक शिक्षा निदेशक को प्रथम दृष्टया अवमानना का दोषी पाया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने निदेशक की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि कठोर आदेश पारित करने से पहले अपने निर्णय की अनुपालना के लिए एक मौका दिया जाता है। ऐसा न करने पर अदालत ने प्रतिवादी मनीष गर्ग को 8 दिसंबर 2022 के लिए तलब किया है।  न्यायाधीश शर्मा ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि प्राथमिक शिक्षा निदेशक ने निर्णय लागू करने के बजाय मामले को जटिल बनाने की कोशिश की है। अदालत ने पाया कि खंडपीठ ने 9 मई 2022 को पूर्व सैनिकों के हक में निर्णय सुनाया था। अभी तक इस निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक नहीं लगाई है। ऐसी स्थिति में प्रतिवादी के पास अदालत के निर्णय को लागू करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है।

अदालत ने निदेशक को नसीहत देते हुए कहा कि अवमानना याचिका में निर्णय लागू करने के सिवा और कोई चारा नहीं होता है। यदि अदालत का निर्णय गलत लगता है तो उस स्थिति में उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। निदेशक ने शपथपत्र के माध्यम से बताया था कि अदालत के निर्णय को लागू नहीं किया जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व सैनिकों को दिए जाने वाले वित्तीय लाभ के मामले में स्थिति स्पष्ट की है। ऐसा प्रतीत होता है कि निर्णय सुनाते समय हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से अवगत नहीं करवाया गया था। ऐसा न करने से हाईकोर्ट ने गलत निर्णय सुनाया है, जिसे लागू नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पूर्व सैनिकों के हक में फैसला सुनाया था। अदालत ने उनकी सैन्य सेवाओं को वेतन निर्धारण के लिए गिने जाने के आदेश दिए थे। छह महीने बीत जाने के बाद भी शिक्षा विभाग ने इस निर्णय पर अमल नहीं किया। मजबूरन याचिकाकर्ता को निर्णय लागू करने के लिए अवमानना याचिका दायर करनी पड़ी। 



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