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निर्वासित तिब्बत संसद के प्रधानमंत्री पेंपा सेरिंग
– फोटो : सोशल मीडिया
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धर्मगुरु दलाईलामा को शांति के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित नोबल पुरस्कार मिलने की 33वीं वर्षगांठ मुख्य बौद्ध मंदिर में शनिवार को मनाई गई। इस दौरान केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की ओर से विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में निर्वासित तिब्बत संसद के प्रधानमंत्री पेंपा सेरिंग ने निर्वासित तिब्बत संसद का बयान पढ़ा। पेंपा सेरिंग ने कहा कि शनिवार को ही मानवाधिकार दिवस भी मनाया जा रहा है। दुर्भाग्यवश तिब्बत के अंदर चीनी सरकार बलपूर्वक कठोरता के साथ मानवाधिकारों को दबा रही है।
आज हालत यह है कि बाहर से आने वाले लोगों को भी तिब्बत के अंदर स्वतंत्रतापूर्वक घूमने से रोका जा रहा है। यहां मानवाधिकारों का पूरी तरह से हनन हो रहा है। सेरिंग ने कहा कि तिब्बतियों पर झूठे अदालती मामले बनाए जा रहे हैं। तिब्बतियों को हिरासत में लिया जा रहा है, जेलों में बंद किया जा रहा है या अपराध के झूठे मामले बनाकर परेशान किया जा रहा है। उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। तिब्बती भाषा, धार्मिक परंपराओं, संस्कृति और तिब्बती विरासत के अन्य पहलुओं को नष्ट किया जा रहा है। अत: निर्वासित तिब्बत संसद विश्व भर के नेताओं से अपील करता है कि चीन को इस तरह की गतिविधियों को रोकने के लिए अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करे।
उन्होंने कहा कि 14वें धर्मगुरु दलाईलामा को शांति के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिलने की आज 33वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। यह हम सबके लिए बेहद अहम दिन है। निर्वासित तिब्बत संसद ने अपने बयान में यह बात कही। बयान में कहा कि इस तिब्बत और निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों की ओर से बेहद आनंद और श्रद्धा के भाव से दलाईलामा को अनंत शुभकामनाएं देते हैं। विश्व में शांति को बढ़ावा देने के लिए उनके प्रयासों को सम्मान में वर्ष 1989 में उन्हें नोबल शांति सम्मान से सम्मानित किया गया था। इस सम्मान के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तिब्बत मसले को लेकर समझ विकसित होने की भावना को भी बल मिला। इस वर्षगांठ को मनाने का उद्देश्य यही है कि हम तिब्बत और निर्वासन में रह रहे सभी तिब्बती मन, वचन और मानसिक रूप से दलाईलामा के अहिंसा के मार्ग पर पूरी प्रतिबद्धता के साथ बढ़ने का संकल्प लें।
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