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उत्तराखंड की पहाड़ी रसोई
– फोटो : अमर उजाला
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हार-जीत के बीच जो मुश्कि़ल लकीर है, उस लकीर को तू मिटा दे…तुझसे ना हो पायेगा जैसी जो तेरी सोच है, इस सोच को तू मिटा दे। इसी हौसले के साथ आगे बढ़ीं देहरादून की पूजा तोमर ने संघर्षों से जूझकर ऐसा मुकाम पाया कि अब विदेशी भी उनके हुनर के मुरीद हैं। अपनी मां के एक आइडिया से 39 वर्षीय पूजा ने ‘पहाड़ी रसोई’ शुरू की, जिससे उनकी खुद की पहचान तो बढ़ ही रही है, साथ ही उत्तराखंड के व्यंजनों को भी विदेशों तक पहचान मिल रही है।
चौसा भात, मंडुवे की रोटी, झंगोरे की खीर तो आपने खाई ही होगी, लेकिन युवाओं में बढ़ रहे फास्ट फूड के क्रेज को देखते हुए पूजा ने इसका हेल्दी वर्जन तैयार किया। मंहुवे के गोलगप्पे, झंगोरे की इडली, मंडुवे का पीजा, कंडाली के कबाब, कंडाली की चाय, मंडुवे के मोमोज़ और डोसा आज युवाओं का जायका बढ़ा रहा है।
पूजा आईटी पार्क के पास अपनी पहाड़ी रसोई चलाती हैं। इसके साथ ही कई सरकारी विभागों के आयोजनों में कैटरिंग का काम भी करती हैं। खादी ग्रामोद्योग, महिला एवं बाल विकास, समाज कल्याण, नाबार्ड, मुख्यमंत्री आवास के आयोजनों में भी उनका खाना सर्व किया जाता है।
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