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– फोटो : फाइल फोटो
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पूर्वांचल में जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह रहा मुख्तार अंसारी की करीब दो दशक तक सियासत में भी दखल रही। वह कई सीटों पर न सिर्फ उम्मीदवार तय करता था बल्कि हराने और जिताने में भी कामयाब रहा। उसके सियासी कद का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि वह खुद विधायक बनने के साथ ही कई दलों के लिए भी चुनाव जिताने का जरिया बना रहा।
मऊ के मोहम्मदाबाद जिले में स्वतंत्रता सेनानी परिवार में तीन जून 1963 को जन्म लेने वाला मुख्तार अंसारी युवावस्था में जरायम की दुनिया में कदम रखा। हत्या, दंगा, गैंगवार सहित हर तरह के आपराधिक रिकार्ड कायम करने के बाद मुख्तार ने 1995 में सियासी मैदान में कदम रखा। उस वक्त जनता दल और कम्युनिस्ट पार्टी का गठबंधन था। वह गाजीपुर सदर विधानसभा सीट से कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद वह बसपा में शामिल हुआ। वर्ष 1996 में बसपा के टिकट पर मऊ से पहली बार विधायक बना। इसके बाद उसने पाला बदला और 2002 और 2007 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और सदन में पहुंचने में सफल रहा। इसके बाद अपने भाई अफजाल अंसारी के साथ मिलकर कौमी एकता दल का गठन किया। वर्ष 2012 के चुनाव में उसने चौथी बार कौमी एकता दल के टिकट पर जीत हासिल की। चुनाव से ठीक पहले वर्ष 2017 में वह फिर बसपा में पहुंचा और मऊ से पांचवीं बार विधायक बनने में कामयाब रहा।
कई जिलों में रहा दबदबा
मुख्तार अंसारी ने मऊ से दोबारा निर्दल विधायक बनने के बाद सियासी पकड़ बढ़ाई। वह कई दलों में अपने लोगों को टिकट दिलाने में कामयाब रहा। इसी बीच पूर्वांचल में एक के बाद एक गैंगवार हुए। माफियाओं की सियासी इंट्री बढ़ी। नतीजा यह रहा कि वह सिर्फ टिकट दिलाने तक ही नहीं बल्कि जिताने में भी भूमिका निभाने लगा।
2002 के बाद उसने मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़, चंदौली, वाराणसी और जौनपुर तक अपने सियासी कद का विस्तार किया। कौमी एकता दल का गठन करने के बाद वह इन जिलों में संगठन का हवाला देकर जनसभाएं करने लगा। यही वजह थी कि उसकी धमक पूर्वांचल के कई जिलों में हो गई।
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