UP: बंजर हो गया हरित प्रदेश का मुद्दा… सियासी नफा-नुकसान के गणित ने परवान नहीं चढ़ने दिया

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issue of Green Pradesh has become barren mathematics of political profit and loss did not allow it to take off

चौधरी चरण सिंह(फाइल फोटो)

कभी यूपी की सियासत को गर्म करने वाला हरित प्रदेश का मुद्दा अब कहीं नहीं है। इस चुनाव तक सियासत की सूरत और सीरत दोनों बदल गई हैं। संसद पहुंचने के लिए नए-नए रास्ते अख्तियार किए जा रहे हैं। मुद्दों पर गठबंधन से लेकर जाति का गुणा भाग हावी है। इस फेर में हरित प्रदेश का मुद्दा बंजर हो गया है।

कभी सियासत में इसे पश्चिम के विकास का इंजन करार दिया गया था। यह सब तब है जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश यानी     मांग वाले हरित प्रदेश ने चौधरी चरण सिंह, बनारसी दास गुप्ता, राम प्रकाश गुप्ता, कल्याण सिंह और मायावती जैसे मुख्यमंत्री दिए हैं।

1953 में चौधरी चरण सिंह ने राज्य पुनर्गठन आयोग से पश्चिमी यूपी को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग की थी। 97 विधायकों ने इसका समर्थन किया था। मामला विकास और अवसरों की बयार का था सो जोर पकड़े रहा। 1978 में सोहनलाल ने विधानसभा में इसका प्रस्ताव रखा।

90 के दशक में चौधरी अजित सिंह ने हरित प्रदेश के मुद्दे को गरमाया था। बाद में जयंत चौधरी ने भी कई मर्तबा यह मांग उठाई। सियासी पकड़ कमजोर पड़ी तो रालोद गठबंधन की राह आ गया। सपा को यह मुद्दा कभी रास नहीं आया था। 2022 के विधानसभा चुनाव में जयंत को सपा के साथ हाथ मिलाना पड़ गया। अब वह भाजपा के साथ हैं।

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