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माना जा रहा है कि यह उसकी सोची-समझी साजिश का हिस्सा भी हो सकता है ताकि मुकदमे की कार्रवाई को और टाला जा सके। हालांकि, पुलिस के अनुसार, मौजूदा चार्जशीट में भी आरोपियों को सजा दिलाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।
अंकिता पर किसी वीआईपी को विशेष सेवा देने का दबाव बनाया जा रहा था। इसी वजह से उसका पुलकित के साथ झगड़ा हुआ और फिर उसकी हत्या कर दी गई। शुरुआत से ही पुलिस पर आरोप लग रहे हैं कि वीआईपी का नाम जानबूझकर छुपाया जा रहा है। ऐसे में परिजनों ने इस मामले में आरोपियों के नार्को टेस्ट की मांग की थी। एसआईटी ने इसका संज्ञान लिया और वीआईपी का नाम जानने के लिए आरोपियों के नार्को टेस्ट की अनुमति मांगी। पिछले दिनों पुलकित और सौरभ ने न्यायालय में जेलर के माध्यम से अपने सहमति पत्र को भिजवा दिया था।
लेकिन, अंकित ने 10 दिन का समय मांगा था। इस केस में यदि तीनों की सहमति मिलती है तभी नार्को या पॉलीग्राफ टेस्ट कराया जा सकता है। ऐसे में अंदेशा यह भी जताया जा रहा है कि यदि अंकित ने फिर समय मांगा या सहमति नहीं दी तो यह मामला टल सकता है। इससे पॉलीग्राफ टेस्ट नहीं होगा तो वीआईपी का नाम सामने कभी नहीं आ पाएगा।
पुलिस ने गिरफ्तारी के बाद तीनों आरोपियों से लंबी पूछताछ की थी। उन्हें तीन दिन की पुलिस कस्टडी रिमांड पर भी लिया गया था। पुलिस को पूछताछ में आरोपियों ने बताया था कि वे वीआईपी कमरे में रुकने वालों को ही वीआईपी मेहमान कहते हैं। बार-बार यही बात आरोपियों ने पुलिस को बताई थी।
अब सवाल उठता है कि पुलिस ने हर वह तरीका अपनाया होगा जिससे वह सभी से राज उगलवाती है। लेकिन, आरोपी टस से मस नहीं हुए। जाहिर है तीनों ने लंबी तैयारी की होगी। ऐसे में पॉलीग्राफ में राज उगलेंगे, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। जानकारों के अनुसार, शातिर और दृढ़ निश्चय वाले अपराधी इस जांच में भी बच निकलते हैं।
राज उगलवाने के लिए नार्को के रिजल्ट बेहतर माने जाते हैं। लेकिन, इसमें जान का खतरा भी हो सकता है। लिहाजा, आमतौर पर न्यायालय की ओर से सुरक्षित समझे जाने वाले पॉलीग्राफ टेस्ट की ही अनुमति दी जाती है।
इस केस में भी न्यायालय ने एसआईटी को पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की सलाह दी थी। ऐसे में माना जा रहा है कि न्यायालय से पॉलीग्राफ की ही अनुमति मिल सकती है।
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