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इसमें पुलिस अधिकारियों की थ्योरी है कि वहां वीआईपी कमरा है जिसमें ठहरने वाले को ही वीआईपी कहा जाता है। इस थ्योरी को कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल भी विधानसभा में बता चुके हैं। लेकिन, पुलिस के लिए इस थ्योरी को साबित करना टेढ़ी खीर होगा। सवाल उठता है कि यदि यही थ्योरी है तो पुलिस नार्को टेस्ट क्यों कराना चाहती है? यानी थ्योरी यह नहीं है और इसको शुरुआती पूछताछ के आधार पर ही सबको बता दिया गया है। वाकई कोई वीआईपी है।
यही नहीं, अगर नार्को नहीं हुआ और वीआईपी का नाम सामने आ गया तो यह थ्योरी अपने आप खत्म हो जाएगी। इससे यह भी साबित होता है कि पुलिस ने केवल चंद लोगों की बातों पर विश्वास करने के बाद वीआईपी का नाम ढूंढने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। विपक्ष और जनता के जवाबों में खुद मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल विधानसभा में कह चुके हैं कि कोई वीआईपी नहीं था। रिजॉर्ट में वीआईपी कमरे में ठहरने वाले मेहमानों को ही कहते हैं।
दरअसल, इस वीआईपी का नाम जानने के लिए पुलिस ने पहले आरोपियों से पूछताछ की थी। इसके बाद वनंत्रा रिजॉर्ट के स्टाफ से भी पूछताछ की गई।
पुलिस अधिकारियों के अनुसार, इन सबने वीआईपी सूट (कमरे) की बात बताई थी। कहा गया था कि इसी को वीआईपी कमरा कहा जाता है। इसके लिए अलग से शुल्क लिया जाता है। इसमें ठहरने वाले को ही वीआईपी मेहमान कहा जाता है।
रिजॉर्ट काफी पुराना था। यहां वीआईपी सूट भी पहले से ही बने थे। अंकिता यहां हत्या से एक माह पहले काम करने आई थी। 18 दिसंबर को अंकिता गायब हो गई और सब कुछ अस्तव्यस्त हो गया।
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ऐसे में वह वीआईपी भी नहीं आया। लेकिन, अंदेशा है कि यहां एक महीने के बीच कई वीआईपी आकर ठहरे होंगे। बताया जा रहा है कि पुलिस ने इस कमरे में आकर ठहरने वाले लोगों का ब्योरा भी जुटाया है। सूत्रों के मुताबिक इन सबके नाम भी चार्जशीट में शामिल किए गए हैं।
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