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Vidarbha
– फोटो : Agency (File Photo)
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विदर्भ (Vidarbha) के लिए विदर्भ में विधानमंडल का शीतकालीन सत्र। नागपुर की यही पहचान है। ब्रिटिश शासनकाल में सेंट्रल प्रोविंस एवं बरार की राजधानी रही नागपुर को वह राजनीतिक वैभव हासिल नहीं हो पाया है जिसकी दशकों से मांग होती रही है। करीब सौ साल पुरानी मांग अब ठंडे बस्ते में पड़ गई है। कोरोना महामारी के चलते दो साल बाद नागपुर में हो रहे शीतकालीन सत्र में पृथक विदर्भ का मुद्दा कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद में गायब हो गया है।
संयुक्त महाराष्ट्र का हिस्सा बनने के बाद नागपुर महाराष्ट्र की उप राजधानी बनी। 28 सितंबर 1953 में हुए नागपुर करार के तहत हर साल महाराष्ट्र विधानमंडल का शीतकालीन सत्र नागपुर में होता है। पहले अलग विदर्भ राज्य के मुद्दे पर लगातार मोर्चे और प्रदर्शन होते रहे हैं। इस बार भी सत्र के दूसरे दिन पूर्व विधायक विदर्भ एकीकरण समिति के नेता बामनराव चटप के नेतृत्व में एक छोटा मोर्चा निकला, लेकिन इसकी गूंज सदन में नहीं सुनाई पड़ी। शुरूआत में विदर्भ में आठ जिले संयुक्त महाराष्ट्र का हिस्सा बने थे, जो अब 11 जिलों में रूपांतरित हो चुका हैं। सत्ताधारी भाजपा विदर्भ राज्य की प्रबल समर्थक रही है, लेकिन अब इस पार्टी के नेता विदर्भ प्रदेश की बात करने से भी कतराते हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और सूबे के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस नागपुर से हैं, लेकिन अलग विदर्भ राज्य के सवाल को सहज ही टाल जाते हैं।
सेंट्रल प्रोविंस एवं बरार ब्रिटिश अधीन मध्य भारत के उन राज्यों से बना था, जिन्हें अंग्रेजों ने मराठों एवं मुग़लों से जीता था। इस प्रदेश की राजधानी नागपुर थी। अंग्रेजी शासनकाल में ही अलग विदर्भ की मांग शुरू हो गई थी। साल 1891 में कांग्रेस के अधिवेशन में पहली बार और इसके बाद भी कई बार विदर्भ को राज्य बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ था। वहीं, स्वतंत्रता के बाद भाषा के आधार पर प्रांत रचना के लिए गठित तीन सदस्यीय फजल अली आयोग ने केंद्र सरकार से अलग विदर्भ राज्य बनाने की सिफारिश की थी।
प्रशांत किशोर भी नहीं ला सके विदर्भ में गर्मी
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी अलग विदर्भ राज्य की मांग को जिंदा करने के लिए बीते सितंबर महीने में नागपुर का दौरा किया था। महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के भतीजे व पूर्व विधायक आशीष देशमुख के बुलावे पर नागपुर आए प्रशांत किशोर ने अलग विदर्भ राज्य के समर्थकों में जोश भरा था। इसके बावजूद विदर्भवादियों में कोई गरमी नहीं देखी गई। आशीष देशमुख ने बताया कि प्रशांत किशोर ने दिल्ली में हुए किसान आंदोलन की तर्ज पर विदर्भ राज्य के लिए बड़ा आंदोलन शुरू करने का सुझाव दिया था। लेकिन बीते दो महीने से उनसे संपर्क ही नहीं हो पाया है।
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