बंगाली ने की बवासीर की सर्जरी, हो गई मौत खोराबार थाना क्षेत्र के कुसम्ही-मोतीराम अड्डा मार्ग पर आयुष नाम का एक अस्पताल चंदन नाम का व्यक्ति चल रहा था। बंगाली क्लीनिक के नाम से इस अस्पताल में बवासीर और भगंदर से लेकर सभी तरह की फोड़ा-फुंसी के ऑपरेशन किए जाते थे। चंदन ने ही खोराबार थाना क्षेत्र के जंगल रामगढ़ उर्फ रजही निवासी राम आशीष का बवासीर का ऑपरेशन किया था। ऑपरेशन के बाद आशीष की मौत हो गई।
केस-दो
अंगूठा का दब रहा था नाखून, दो इंजेक्शन लगाया हो गई मौत
कैंट थाना क्षेत्र में स्थित एक अस्पताल में कंदराई निवासी लाल चंद यादव 12 वर्षीय बेटे प्रिंस यादव को इलाज के लिए लेकर आए थे। प्रिंस के पैर में के दाएं अंगूठे का नाखून दब रहा था। आरोपी विजय यादव ने प्रिंस के ऑपरेशन से पहले दो इंजेक्शन लगाए। इंजेक्शन लगाने के थोड़ी ही देर बाद प्रिंस के मुंह से झाग निकलने लगा। इस दौरान थोड़ी ही देर बाद उसकी मौत हो गई। परिजनों ने हंगामा किया तो विजय फरार हो गया। मामले में पुलिस ने हत्या का केस दर्ज किया।
ये दो केस तो महज बानगी हैं। ऐसे सैकड़ों लोगों की जान झोलाछाप (बिना डिग्री वाले) ले रहे हैं। लेकिन, इन पर विभाग अंकुश नहीं लगा पा रहा है। ऐसे झोलाछाप विभागीय सांठगांठ से किसी न किसी एमबीबीएस डॉक्टर के नाम पर हॉस्पिटल खोल दे रहे हैं।
विवाद में अगर ऐसे अस्पताल बंद हो जा रहे हैं, तो उनके नाम पर हेर-फेर कर दूसरी बार रजिस्ट्रेश करा ले रहे हैं। इसके बाद फिर से अपने धंधे को शुरू कर दे रहे हैं। इसकी वजह से मरीजों की जान जा रही है। सत्यम हॉस्पिटल ने भी यही काम दो बार किया। पहले दो बार अलग-अलग नामों से हॉस्पिटल बिना रजिस्ट्रेशन के चलाता रहा। इसके बाद जब दोनों बार पकड़ा गया तो अस्पताल सील हुआ।
एक तथाकथित पत्रकार की मिलीभगत ओर विभागीय सांठगांठ से सत्यम हॉस्पिटल के नाम से रजिस्ट्रेशन करा लिया गया। इसके बाद 12वीं पास रंजीत खुद डॉक्टर बनकर मरीजों का ऑपरेशन तक करने लगा।
तारामंडल, गुलरिहा, पैडलेगंज इलाके में कई ऐसे बीएएमएस मिल जाएंगे, जो न केवल एलोपैथ पद्धति से इलाज कर रहे, बल्कि गंभीर मरीजों के लिए ट्रॉमा सेंटर, न्यूरो, बर्न यूनिट, आईसीयू व स्पेशियलिटी हॉस्पिटल भी चला रहे हैं। यहीं नहीं यहां बड़े ऑपरेशन और डायलिसिस तक की सुविधा इन अस्पतालों में मौजूद है। तारामंडल क्षेत्र तो ऐसे अस्पतालों का हब बन गया है।
पैडलेगंज में तो जूता पालिश और हाईस्कूल फेल होने वाला व्यक्ति भी अस्पताल का संचालक बन बैठा है। इन अस्पतालों में नामी डॉक्टरों के नाम के बोर्ड भी लगाए गए हैं। जबकि, ये उन अस्पतालों में इलाज के लिए जाते भी नहीं हैं। कई डॉक्टरों के नाम ऐसे हैं, जो रहते लखनऊ में हैं, लेकिन उनके नाम का बोर्ड तारामंडल इलाके के कई अस्पतालों में दिख जाएगा।
एंबुलेंस चालक निजी अस्पतालों को बेच रहे मरीज बीआरडी मेडिकल कॉलेज के आसपास एंबुलेंस चालकों का हब है। यहीं से पूरा खेल खेला जा रहा है। एंबुलेंस चालक बीआरडी में आने वाले मरीजों को अच्छे इलाज का झांसा देकर निजी अस्पतालों के हाथों बेच दे रहे हैं। एक मरीज के बदले 10 से 20 हजार रुपये लेते हैं। अगर सर्जरी की बात आती है तो यह रकम 20 से 25 हजार के आसपास हो जाती है। सबसे अधिक शिकार बिहार और आसपास के जिलों के मरीजों को बनाते हैं।
अस्पताल पंजीकरण नोडल अधिकारी डॉ. एके सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग बिना पंजीकरण चल रहे अस्पतालों पर लगातार कार्रवाई कर रहा है। अब तक 86 ऐसे अस्पतालों पर कार्रवाई की जा चुकी है। कई मामलों में मुकदमा भी दर्ज कराया गया है। ऐसे अस्पतालों के खिलाफ अभियान भी चलाया जाएगा।
विस्तार
केस-एक
बंगाली ने की बवासीर की सर्जरी, हो गई मौत
खोराबार थाना क्षेत्र के कुसम्ही-मोतीराम अड्डा मार्ग पर आयुष नाम का एक अस्पताल चंदन नाम का व्यक्ति चल रहा था। बंगाली क्लीनिक के नाम से इस अस्पताल में बवासीर और भगंदर से लेकर सभी तरह की फोड़ा-फुंसी के ऑपरेशन किए जाते थे। चंदन ने ही खोराबार थाना क्षेत्र के जंगल रामगढ़ उर्फ रजही निवासी राम आशीष का बवासीर का ऑपरेशन किया था। ऑपरेशन के बाद आशीष की मौत हो गई।
केस-दो
अंगूठा का दब रहा था नाखून, दो इंजेक्शन लगाया हो गई मौत
कैंट थाना क्षेत्र में स्थित एक अस्पताल में कंदराई निवासी लाल चंद यादव 12 वर्षीय बेटे प्रिंस यादव को इलाज के लिए लेकर आए थे। प्रिंस के पैर में के दाएं अंगूठे का नाखून दब रहा था। आरोपी विजय यादव ने प्रिंस के ऑपरेशन से पहले दो इंजेक्शन लगाए। इंजेक्शन लगाने के थोड़ी ही देर बाद प्रिंस के मुंह से झाग निकलने लगा। इस दौरान थोड़ी ही देर बाद उसकी मौत हो गई। परिजनों ने हंगामा किया तो विजय फरार हो गया। मामले में पुलिस ने हत्या का केस दर्ज किया।
ये दो केस तो महज बानगी हैं। ऐसे सैकड़ों लोगों की जान झोलाछाप (बिना डिग्री वाले) ले रहे हैं। लेकिन, इन पर विभाग अंकुश नहीं लगा पा रहा है। ऐसे झोलाछाप विभागीय सांठगांठ से किसी न किसी एमबीबीएस डॉक्टर के नाम पर हॉस्पिटल खोल दे रहे हैं।
विवाद में अगर ऐसे अस्पताल बंद हो जा रहे हैं, तो उनके नाम पर हेर-फेर कर दूसरी बार रजिस्ट्रेश करा ले रहे हैं। इसके बाद फिर से अपने धंधे को शुरू कर दे रहे हैं। इसकी वजह से मरीजों की जान जा रही है। सत्यम हॉस्पिटल ने भी यही काम दो बार किया। पहले दो बार अलग-अलग नामों से हॉस्पिटल बिना रजिस्ट्रेशन के चलाता रहा। इसके बाद जब दोनों बार पकड़ा गया तो अस्पताल सील हुआ।
एक तथाकथित पत्रकार की मिलीभगत ओर विभागीय सांठगांठ से सत्यम हॉस्पिटल के नाम से रजिस्ट्रेशन करा लिया गया। इसके बाद 12वीं पास रंजीत खुद डॉक्टर बनकर मरीजों का ऑपरेशन तक करने लगा।