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चिराग पासवान NDA में शामिल हो गए।
– फोटो : अमर उजाला
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लोक जनशक्ति पार्टी की शक्ति बिहार में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए जरूरी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाजपा का साथ छोड़ने के बाद ही इसकी जरूरत सामने आ गई थी। लेकिन, 2020 के विधानसभा चुनाव में जो कुछ हुआ था, उसके बाद तुरंत चिराग पासवान को साथ नहीं लाया जा सकता था। अब आज चिराग राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की बैठक में रहे। एनडीए में उनके लिए क्या रोडमैप है या होना चाहिए, यह समझने के लिए शुरुआत लोजपा से करनी होगी।
लोक जनशक्ति पार्टी की टूट भाजपा क्यों देखती रही
दिवंगत रामविलास पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था। उनकी बनाई लोक जनशक्ति पार्टी के बिहार में छह सांसद हैं। उनमें तीन उनके घर से हैं- भाई पशुपति कुमार पारस, बेटा चिराग पासवान और भतीजा प्रिंस राज। 2019 के लोकसभा चुनाव के समय लोजपा में सबकुछ ठीकठाक था। लोजपा को भाजपा ने बिहार की छह सीटें लड़ने के लिए दी। पार्टी छह की छह जीत भी गई। तब पासवान परिवार के सबसे छोटे भाई रामचंद्र जीते थे, लेकिन कुछ ही समय बाद उनका निधन हो गया तो उनके बेटे प्रिंस राज ने उसी समस्तीपुर सीट से जीत हासिल की। लोजपा का संकट 2020 में तब शुरू हुआ, जब चिराग पासवान का बुरा वक्त आया। इधर पिता का निधन हो गया और उधर विधानसभा में उनकी मनचाही संख्या में सीटें नहीं दी गईं। तब चिराग ने इसके लिए जदयू और नीतीश कुमार को जिम्मेदार मानते हुए एनडीए से बगावत कर दी। कथित तौर पर इस बगावत में भाजपा का हाथ था, लेकिन यह साबित कभी नहीं हुआ। असर जरूर हुआ।
बिहार विधानसभा चुनाव में जब जदयू को दिया घाव
चिराग ने विधानसभा चुनाव में 135 प्रत्याशी उतारे। इनमें 110 की जमानत जब्त हुई और जीते सिर्फ एक। लेकिन, बाकी 24 ने जदयू को ऐसी चोट दी कि वह उबर नहीं सकी। जदयू विधानसभा में तीसरे नंबर पर आ गई। लोजपा के इकलौते विधायक को जदयू ने बाद में अपने साथ कर लिया, लेकिन इतने से गुस्सा शांत नहीं हुआ। जदयू के नेता मौका-बेमौका भाजपा को इसके लिए जिम्मेदार बताते रहे। इस कारण 2020 में एनडीए को मिले जनादेश से मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार जबतक भाजपा के साथ कुर्सी पर रहे, चिराग के लिए एनडीए में सॉफ्ट कॉर्नर नहीं दिखा।
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