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दरगाह आला हजरत, बरेली
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
बरेली के दरगाह आला हजरत पर मंगलवार को मुफ्ती-ए-आजम का 43वां रोजा उर्स-ए-नूरी दरगाह प्रमुख हजरत मौलाना सुब्हान रजा खान (सुब्हानी मियां) व सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रजा कादरी की देखरेख में मनाया गया। सुबह से अकीदतमंदों का दरगाह पर गुलपोशी का सिलसिला चलता रहा। इसके बाद देशभर से जुटे उलेमाओं की तकरीरें हुईं।
मदरसा मंजरे इस्लाम में शिक्षक मुफ्ती सलीम नूरी ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं व बच्चियों को बहला-फुसलाकर अपने मजहब व समाज से बगावत को गंभीरता से लेने की जरूरत है। हमें चाहिए कि हम उनकी गैरों से हिफाजत करें। कहा कि मुफ्ती-ए-आजम ने पूरी जिंदगी में मजहब की खिदमत के साथ समाज सुधार के काम किए हैं। आज हमारे मजहब की बहन-बेटियों की धर्म की शिक्षा, इज्जत और जान खतरे में है।
माता-पिता की होनी चाहिए काउंसलिंग
ऐसे में जरूरत यह भी है कि माता-पिता की काउंसलिंग भी मजहब की शिक्षा देने वाले शिक्षकों से कराई जाए। शहर काजी मौलाना मुख्तार बहेड़वी ने कहा कि मुस्लिम बच्चियों में मजहबी तालीम की कमी है। यही वजह है कि वह गैरों के बहकावे में आकर अपना मजहब और घर खानदान सब कुर्बान कर रही है। ऐसी स्थिति में उनके माता-पिता के साथ-साथ भाई और बहनों की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह देखे उनका किससे मिलना जुलना होता है।
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