Vishwakarma Puja 2023: सुदर्शन चक्र और त्रिशूल के निर्माणकर्ता थे भगवान विश्वकर्मा

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सलिल पांडेय

सृष्टि के प्रारंभ में रहने के लिए मंदिर-घर-महल, सुरक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्र, आवागमन के लिए पुष्पक विमान, ऊर्जा-संयंत्रों आदि की परिकल्पना एवं निर्माण का कार्य भगवान विश्वकर्मा ने किया. यही कारण है कि निर्माण कारखानों, शिल्प प्रतिष्ठानों एवं उद्योग केंद्रों में भगवान विश्वकर्मा की जयंती आस्था एवं श्रद्धा के साथ हर वर्ष मनायी जाती है. अन्य देवी-देवताओं की जयंती की तिथियों की तरह उनकी जयंती भी वैदिक काल में सौर पंचांग के अनुसार भाद्रपद की संक्रांति पर मनायी जाती थी, लेकिन कालांतर में यह तिथि सितंबर माह में 17 तारीख के लिए निर्धारित हो गयी.

धार्मिक मान्यतानुसार, आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए सतयुग में भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र एवं भगवान शंकर को त्रिशूल विश्वकर्मा भगवान ने ही बना कर प्रदान किया, जिसका प्रयोग तारकासुर के वध के समय देवताओं द्वारा किया गया. त्रेतायुग में लंका का निर्माण भी विश्वकर्मा भगवान द्वारा किया गया. विश्वकर्मा को भिन्न-भिन्न ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में माना गया है. इन्हें ब्रह्मा का भी एक स्वरूप तथा कहीं शिल्प और शास्त्र के आविष्कारक के रूप में माना गया है.

सूर्य की पत्नी संज्ञा भगवान विश्वकर्मा और उनकी पत्नी लावण्यमयी की कन्या थी, लेकिन सूर्य के तेज से जब संज्ञा झुलसने लगी, तो सूर्य के उस अति प्रचंड आठवीं किरण को विश्वकर्मा ने काट दिया. आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से देखा जाये, तो इस ऊर्जा का प्रयोग विश्वकर्मा ने कल-कारखानों, उद्योगों, विमानों के लिए किया, क्योंकि सूर्य बुद्धि के देवता हैं और चंद्रमा मन के. वैज्ञानिक आविष्कार के लिए बौद्धिक क्षमता की जरूरत पड़ती है, इसलिए सूर्य के ऊर्जा-भंडार का प्रयोग उन्होंने लोकहित में किया. इस प्रकार सृष्टि के विकास में भगवान विश्वकर्मा का योगदान महत्वपूर्ण है. नयी खोज, नव-निर्माण के इस दौर में भगवान विश्वकर्मा के बारे में गहराई से अध्ययन की जरूरत है.

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