AAP-Congress: आप-कांग्रेस गठबंधन में अब नया पेंच, दलित वोटों को लेकर आमने-सामने आए नेता

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new twist in AAP-Congress alliance, leaders come face to face regarding Dalit votes

AAP-Congress alliance
– फोटो : Amar Ujala/Rahul Bisht

विस्तार


आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीटों के तालमेल में दलित मतदाताओं को अपने पाले में लाने के मुद्दे पर आपसी मतभेद सामने आ रहे हैं। अब तक के तय फॉर्मूले में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को दिल्ली में चांदनी चौक, पूर्वी दिल्ली के अलावा उत्तर पूर्वी दिल्ली की सीट दी थी। इस पर कांग्रेस नेताओं ने सहमति भी जता दी थी, लेकिन अब कांग्रेस अपने लिए उत्तर पूर्वी दिल्ली की सीट की बजाय उत्तर पश्चिमी दिल्ली की सीट मांग रही है। यही कारण है कि दोनों दल एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं।

दरअसल, कांग्रेस शुरू से ही अपने लिए उत्तर पश्चिमी दिल्ली की सीट मांगी थी। यह सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए सुरक्षित है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा के हंसराज हंस को बड़ी जीत मिली थी। कांग्रेस के राजेश लिलोठिया यहां तीसरे नंबर पर रहे थे। लेकिन दलित मतदाताओं की बहुलता वाली सीट पर कांग्रेस अपना दावा जताती रही है। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि दलित मतदाता राजधानी में परंपरागत रूप से कांग्रेस के वोटर रहे हैं, जो बाद में आम आदमी पार्टी के बड़े समर्थक बन गए।

अब अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के कारण कांग्रेस को लगता है कि वह उनके नाम के सहारे अपने इस परंपरागत वोटर बैंक को न केवल अपने साथ वापस ला सकती है, बल्कि उनके सहारे दिल्ली की राजनीति में वापसी भी कर सकती है। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि यदि यहां से वह अपने उम्मीदवार को उतारती है, तो खरगे इफेक्ट के कारण इससे इस सीट पर उसकी जीत सुनिश्चित हो सकती है। जबकि उसे लगता है कि यदि आम आदमी पार्टी यहां से लड़ती है, तो उसे यहां से जीत नहीं मिलेगी और यह सीट एक बार फिर भाजपा के पाले में चली जाएगी।

आम आदमी पार्टी के साथ सीटों का पेंच गुजरात में भी फंस रहा है। कहा जा रहा था कि भरुच की लोकसभा सीट राहुल गांधी आम आदमी पार्टी को देने पर राजी हो गए हैं, लेकिन नई जानकारी के अनुसार गुजरात कांग्रेस के नेताओं ने इस पर अपना विरोध दर्ज करा दिया है। उनका कहना है कि यदि यह सीट भी आम आदमी पार्टी को दे दी जाएगी, तो इससे गुजरात के आदिवासी मतदाताओं के बीच पार्टी की उपस्थिति कमजोर हो जाएगी। ऐसे में सीटों पर तालमेल बिठाना एक बार फिर दोनों दलों के लिए परेशानी का कारण बन गया है।




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