AIDS Day: पति से मिली एड्स, ससुराल वालों ने ठुकराया, हिम्मत ने जीना सिखाया, अब बनीं हैं दूसरों के लिए प्रेरणा

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पति से एड्स मिली, ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और पिछले 19 साल से एड्स को मात देकर जीने की कला सीखी है। यह हकीकत है मिश्रीवाला निवासी 42 वर्षीय महिला की, जिन्होंने एचआईवी जैसी बीमारी पाकर भी इच्छाशक्ति को मरने नहीं दिया और आज अन्य एचआईवी पीड़ितों के लिए प्रेरणा बनीं हैं। उनका कहना है कि बीमारी कभी भी किसी को भी मिल सकती है, लेकिन इसे छुपाने के बजाय स्वस्थ होने के लिए लड़ना जरूरी है। यही जज्बा किसी भी बीमारी को हरा सकता है।

मोनिका (काल्पनिक नाम) ने बताया कि वर्ष 1999 में उनकी शादी हुई थी। पति काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों में रहते थे। वर्ष 2003 में उन्हें खुद के एचआईवी पीड़ित होने की जानकारी मिली। यह बीमारी उन्हें पति से मिली और उन्होंने आखिर तक इसको छुपाकर रखा था। मुझे बुखार के साथ कमजोरी रहने लगी। एक बार बीमारी से तंग आकर पति ने आत्महत्या का प्रयास किया, तब मैं बहुत बीमार थी। 2003 में पति की मौत हो गई और मेरे लिए आगे पूरा जीवन जीना एक कड़ी चुनौती थी।

पति के 13वें पर ही ससुराल वालों ने मेरा सामान घर के बाहर फेंक दिया। ससुराल के सदस्यों को डर था कि मुझसे उनको भी एड्स हो जाएगी। मामा ने मदद की और ससुराल में ही अलग से एक कमरा दिलाया। फिर मेरा दूसरा जीवन शुरू हुआ। एक कमरे में मैं खुद और डेढ़ साल की बेटी की परवरिश करने लगी। हिम्मत नहीं छोड़ी और मेरा आत्मविश्वास बढ़ता चला गया। मैने ब्यूटी पार्लर का काम सीखा। निरंकारी आश्रम ने मेरी वित्तीय मदद की। आज बेटी 22 साल की हो गई है और हम दोनों खुश हैं। रात को सोते वक्त सिर्फ एक टेबलेट लेती हूं और पूरी तरह से स्वस्थ हूं। मैं जेएंडके एड्स कंट्रोल सोसायटी के साथ कैंपों में जाकर पीड़ितों को जीने की प्रेरणा दे रही हूं।

दो बार आत्महत्या की कोशिश की, फिर भी जिया

जम्मू निवासी प्रगति (काल्पनिक नाम) ने बताया कि उसे 2011 में खुद के एचआईवी संक्रमित होने का पता चला। पति सिरिंज से नशा करते थे और आशंका है कि सामूहिक सिरिंज का प्रयोग करने से उन्हें एड्स की बीमारी मिली। पति ने यह बीमारी छुपाकर रखी। फिर मुझे बुखार आने लगा और कमजोर होने लगी। बत्रा अस्पताल जम्मू में भर्ती होने पर मरने का मन करता था। तब मैं 22 साल की थी। मैने दो बार आत्महत्या की कोशिश भी की।  मेरा 82 किलो से वजन घटकर 25 किलो पहुंच गया। मां-बाप, बहन-भाई सबने किनारा कर लिया। 

लेकिन जेएंडके एड्स कंट्रोल सोसायटी की को-ऑर्डिनेटर राधिमा के संपर्क में आने पर मुझे फिर जीने के लिए प्रेरणा मिली। पति की 2021 में मौत हो गई। आज मैं अलग रहती हूं और एक एनजीओ के साथ काम करके खुद का खर्च निकाल रही हूं। मेरे दो बेटे पूरी तरह से स्वस्थ हैं। जिन रिश्तेदारों ने मुझे शुरू में छोड़ दिया था, अब वे मुझसे मिलने आते हैं। वे सोचते थे कि यह एड्स से मर जाएगी, लेकिन मन में अगर जीने की इच्छा हो तो कोई भी बीमारी आप पर हावी नहीं हो सकती है, बशर्ते उसका समय पर उपचार लेना जरूरी है। मैं आज रात को सोते समय सिर्फ एक टेबलेट ले रही हूं। 

पीड़ितों को 12 हजार की सालाना वित्तीय मदद 

जेएंडके एड्स कंट्रोल सोसायटी के प्रोजेक्ट निदेशक डॉ. समीर मट्टू का कहना है कि एचआईवी पीड़ितों के बेहतर चिकित्सा प्रबंधन पर काम किया जा रहा है। एक पीड़ित को पोषण के लिए सालाना 12 हजार रुपये की वित्तीय मदद दी जा रही है। उनके पुनर्वास के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गई हैं। इसके साथ नशे के पीड़ितों के लिए ओएसटी केंद्र खोले गए हैं। 

इस साल 71 लोगों की एड्स से मौत, 362 नए पीड़ित मिले

जम्मू कश्मीर में इस साल अब तक 71 लोगों की एड्स से मौत हो चुकी है। अब तक प्रदेश में 1332 लोग एड्स से जान गंवा चुके हैं। जबकि इस साल 362 नए पीड़ित पंजीकृत हुए हैं और प्रदेश में अब तक यह कुल आंकड़ा 5896 है। प्रदेश में जीएमसी जम्मू, स्किम्स श्रीनगर और जीएमसी कठुआ में एचआईवी पीड़ितों को उपचार दिया जा रहा है। इनमें 3313 मरीज इलाज पा रहे हैं जबकि 524 ने बीच में इलाज छोड़ दिया। जीएमसी जम्मू में सबसे अधिक 4900 एचआईवी पीड़ित पंजीकृत हैं। इसमें 2913 पुरुष, 1696 महिलाएं, 11 ट्रांसजेंडर, 162 बाल और 118 बालिकाएं शामिल हैं। जीएमसी में पंजीकृत मरीजों में 1172 की एड्स से मौत हो चुकी है, जबकि एआरटी सेंटर पर 2625 मरीज इलाज ले रहे हैं। 



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