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केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह
– फोटो : सोशल मीडिया।
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का मिथिलांचल की धरती झंझारपुर में आना सनातन से लेकर भारत और I.N.D.I.A. तक की बातों की अगली फेहरिस्त है। मगर बात झंझारपुर की धरती से पूरे मिथिला की होगी। बता दें कि जब विद्यापति सेवा संस्थान के संस्थापक महासचिव और अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति के अध्यक्ष बैजनाथ चौधरी बैजू से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पूछा था कि हनुमान अब तो मिथिला राज्य नहीं मांगोगे। क्योंकि, मिथिलांचल की प्रतिरक्षित मांग मैथिली को अष्टम सूची में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने शामिल कर दिया था। उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी से मिलने पर बैजू बाबू ने कहा था हुजूर एक साथ दे दिया जाता तो आगे मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी।
पिछड़ी और अतिपिछड़ी बहुत सीट से संपूर्ण मिथिलांचल को साधने की कवायद
आज मिथिला के पास सबकुछ है मगर हनुमान की चाहत आज भी अधूरी है। भले अमित शाह सनातन धर्म व भारत और इंडिया के विवादों के बीच में मिथिलांचल की मर्यादा को समेटने झंझारपुर आ रहे हैं। अमित शाह का यहां आना कई सारे भी कर रहा है मगर सवाल की शुरुआत इस हनुमान के मिथिला से जिसे पूर्ण बहुमत से सत्ता में होने के वावजूद आज भी मिथिलाराज्य का सपना अधूरा ही है। मिथिलांचल का यह झंझारपुर सीट अगली जाति को साधने की कोशिश कर रहा है या फिर पिछड़ी और अतिपिछड़ी बहुत सीट से संपूर्ण मिथिलांचल को साधने की कवायद। मगर इतना तय है अमित शाह झंझारपुर में आज की रैली के कई मायने और उसके रास्ते मिथिला की माटी यहां की जरुरत यहां की उपयोगिता पर बहस के बीच उसी के इर्द-गिर घूमेगा।
भाजपा की ओर से आने वाले बयानों से पृथक मिथिला राज्य के गठन को परोक्ष बल मिला
राजनीतिकरण के उलझते परत में बीपीएससी और प्राथमिक शिक्षा में मैथिली को दरकिनार ही आज तक रखा गया है। मिथिला कई देश की मान्यता को खुद में समेटे संपूर्ण देश था। उसे सांगठनिक शक्ति का विखंडन खंड-खंड विभाजित होकर दिखना यहां के लोगो को खलता है। यहां के लोगों की जरूरत बिहार की सत्ता की और दलगत धकेलती है। क्योंकि भाजपा सरकार में ही कई छोटे राज्यों का गठन हुआ जैसे उत्तराखंड तेलंगाना आंध्र बोडो भाजपा सरकार में ही अस्तित्व में आए है। लेकिन, मिथिला को आज भी इंतजार में है। इन राज्यों का बनने का आधार अलग-अलग है। कोई राजभाषा के आधार पर बने तो किसी राज्य के गठन में परिसीमन का आधार मुखर रहा। जबकि मिथिला कभी देश हुआ करता था। और आज सैकड़ों वर्ष से पृथक राज्य की डिमांड करता आ रहा है। इससे अभी तक किसी ने पूरा नहीं किया। समय समय पर भाजपा की ओर से आने वाले बयानों से पृथक मिथिला राज्य के गठन को परोक्ष बल मिला है। अब तक मिथिला राज्य नहीं बन पाने का कारण यहां के विभिन्न नेताओं का अलग-अलग टुकड़ों में बंटा होना रहा है। इससे मिथिला के सांगठनिक शक्ति का विखंडन होता है। इस वजह से यह शक्तियां राजनीतिक रूप से अलग-अलग इस्तेमाल होने को मोहताज रही है।
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