[ad_1]

On the days of terror… the victims used to come out in disguise
ख़बर सुनें
दहशत के दिन…भेष बदलकर निकलते थे पीड़ित
सीबीआई कोर्ट ने 2016 में आरोपी पुलिस कर्मियों को सुनाई थी उम्रकैद सजा, तब आरोपी गए थे हाईकोर्ट
पीड़ितों और पैरोकारों को मिलती थीं धमकियां
संवाद न्यूज एजेंसी
पीलीभीत। गजरौला क्षेत्र में 12 जुलाई 1991 को आतंकी बताकर मुठभेड़ में मारे गए सिख श्रद्धालुओं की घटना के जख्म आज भी रह-रहकर उभर आते हैं। वर्षों तक पीड़ित परिवार दहशत में जिंदा रहे। कुछ घर छोड़ दूसरे राज्य में चले गए। किसी ने देश ही छोड़ दिया। मुकदमे की पैरवी कर रहे हरजिंदर सिंह कहलो ने बताया कि खौफ के कारण मुस्लिमों की तरह कपड़े पहनकर निकलना पड़ता था।
हरजिंदर सिंह कहलो ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने रिट दायर की थी। इसकी सूचना पुलिस को लग गई। पुलिस ने उनकी तलाश शुरू कर दी थी। इसी दौरान उनके अधिवक्ता ने हस्ताक्षर करने के लिए बुलाया था। खौफ के कारण उन्हें मुस्लिमों की तरह कपड़े पहनकर जाना पड़ा। इसी हालत में मुठभेड़ में मारे गए नरेंद्र की मां को दिल्ली ले जाना पड़ा था। मलकीत सिंह के बेटे को भी फर्जी मुठभेड़ में मार दिया था। पुलिस ने परेशान करना शुरू किया तो मलकीत सिंह कनाडा चले गए थे। पुलिस की ओर से लगातार धमकियां मिल रहीं थीं।
मुकदमा में पैरवी कर रहे शहर निवासी हरजिंदर सिंह कहलों ने बताया कि 12 जुलाई को 11 सिख श्रद्धालुओं को पुलिस ने जंगल में ले जाकर आतंकवादी बातकर फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था। इस मामले में जानकारी होने पर परिजन ने हंगामा किया था। इसके बाद परिवार के लोगों ने उच्च न्यायालय में गुहार लगाकर सीबीआई जांच कराने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 1992 में सीबीआई ने इस मामले की जांच की थी। जांच के दौरान सीबीआई ने भी पाया था कि पुलिसकर्मियों ने फर्जी मुठभेड़ की थी।
43 दोषी ही जिंदा हैं
आरोप पत्र दाखिल होने के बाद सीबीआई कोर्ट ने सुनवाई की। अप्रैल 2016 में 57 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। उस समय तक 57 लोगों में से दस की मौत हो चुकी थी। सीबीआई कोर्ट का फैसला आने के बाद आरोपियों ने हाईकोर्ट की शरण ली। हालांकि हाईकोर्ट में ट्रॉयल के दौरान चार दोषियों की और मौत हो गई है। अब 43 दोषी ही जिंदा हैं।
पुलिस सिख युवकों को गाड़ी में लेकर घूमती रही और अपने पीछे-पीछे सबूत छोड़ती गई
बड़ी हिम्मत से सुबूत इकट्ठा कर पहुंचाए थे कोर्ट
संवाद न्यूज एजेंसी
पीलीभीत। कहते हैं कि जुर्म कितनी सफाई से क्यों न किया जाए, वह अपने निशान छोड़ ही जाता है। पीलीभीत के फर्जी मुठभेड़ कांड में भी ऐसा ही हुआ। पुलिस सिख युवकों को गाड़ी में लेकर घूमती रही और अपने पीछे-पीछे सबूत भी छोड़ती गई। गवाहों ने इन सबूतों को बहुत हिम्मत कर कोर्ट तक पहुंचाया, जिनके दम पर इस फर्जी मुठभेड़ कांड का खुलासा हो सका।
हरजिंदर सिंह कहलो ने बताया कि बेवहा फार्म के मेजर सिंह और गजरौला के मिल्खा सिंह इस मामले में महत्वपूर्ण गवाह बने। कहलो ने बताया कि मेजर सिंह ने अपने बयान में कहा कि 12 जुलाई 1991 की दोपहर करीब ढाई या तीन बजे वह खेत की जुताई कर ट्रैक्टर से घर लौट रहे थे। खेत से निकलकर रोड पर आए ही थे कि पीछे से पुलिस की कुछ गाड़ियां ट्र्रैक्टर के पीछे आ पहुंचीं और हार्न बजाना शुरू कर दिया। उनके ट्रैक्टर के पीछे पाटा जुड़ा था जो कभी दाएं तो कहीं बाएं जा रहा था, इसलिए उन्होंने ट्रैक्टर को साइड में करके धीमा कर दिया। पुलिस की गाड़ियां निकलने लगीं। गाड़ियों में तीन या चार लड़के बैठे थे। उनके लंबे बाल देखते ही अहसास हुआ कि यह सब सिख हैं। अगले दिन अखबारों से मुठभेड़ में कई सिख युवकों के मारे जाने की घटना का पता चला।
ऐसा ही गवाह मिल्खा सिंह के साथ हुआ था। वह भी 12 जुलाई 1991 को कोे खेत से घर लौट रहे थे। उन्होंने भी पुलिस की गाड़ियों के भीतर कुछ सिख युवकों को देखा था। उनके बाल मिट्टी से सने थे, उनमें से अधिकतर ने तो सिर ही नहीं उठाया।
फ्लैश बैक
गवाह न बन जाए.. इसलिए मार दिया था लक्खा को
पीलीभीत। फर्जी एनकाउंटर में मासूम लखविंदर सिंह को पुलिस ने इसलिए गोली मार दी थी कि उन्हें डर था कहीं वह सरकारी गवाह न बन जाए। लखविंदर सिंह के बड़े भाई बलकार सिंह का कहना था कि अमरिया ब्लॉक के गांव जगत निवासी गुरमेज सिंह की आठ संतानों में लखविंदर सिंह उर्फ लक्खा चौथे नंबर का था। तीर्थ यात्रा पर जाने की जिद पर परिवार वालों ने अन्य तीर्थ यात्रियों के साथ उसे भी भेज दिया था। बलकार सिंह ने बताया कि उस दौरान लखविंदर दसवीं में पढ़ता था। संवाद
इतनी दहशत कि छोड़ना पड़ा था देश
पीलीभीत मुठभेड़ कांड में पुलिस वालों को दोषी करार दिए जाने की खबर वैंकूवर में रह रहे मलकीत सिंह को अपनी बेटी रूपिंदर कौर से मिली। उनके परिवार से सिर्फ रूपिंदर ही हिंदुस्तान में रह रही हैं। मलकीत दंपती अपनी दो बेटियों और एक बेटे के साथ वर्ष 2005 में ही देश छोड़कर कनाडा चले गए थे। वहीं उन्होंने अपने बच्चों की शादी भी कर दी। एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी करने वाले मलकीत ने उस वक्त बताया था कि पहले बेटे को मारा, फिर ड्राइवर को। घर में तीन बेटियां थी। पुलिस वाले हमें आतंकवादी साबित करना चाहते थे। जब मन हुआ, घर में धमक पड़ते थे। एक साल बाद 1992 में उनके ड्राइवर को मार डाला गया। उन्होंने बताया था कि उन्हें लगता है कि पुलिस वाले उन्हें भी मार डालेंगे। इसी डर से यूपी छोड़ दिया। बाद में बच्चों की जान की खातिर कनाडा आ गए। संवाद
On the days of terror… the victims used to come out in disguise
[ad_2]
Source link