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23 जून को बैठक है और 19 तक मायावती और ओवैसी को लेकर तरह-तरह की चर्चा भर है।
– फोटो : अमर उजाला
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“मुसलमान, दलित और आदिवासी से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दुश्मनी है। वह 40 फीसदी को साथ लिए बगैर कैसी विपक्षी एकता तैयार कर रहे, वही जानें!”- यह भारतीय जनता पार्टी के किसी नेता का बयान नहीं। न ही, महागठबंधन का ताजा-ताजा साथ छोड़ने वाले किसी नेता का है। पटना में 23 जून को विपक्षी एकता के लिए होने वाली बैठक में ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी आ रहे हैं या नहीं, इस सवाल पर मिला जवाब है। यह जवाब किसने दिया, उससे ज्यादा यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्यों दिया?
क्योंकि, ओवैसी को बिहार में मिला यह घाव
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में एआईएमआईएम के पांच विधायक जीते थे। अरसे बाद हुआ था कि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड (JDU) से कोई मुस्लिम विधायक नहीं बना था। तब नीतीश कुमार भाजपा के साथ रहकर चुनाव लड़े थे और सरकार भी बनाई थी। 2020 के चुनाव में राजद के सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक जीते थे। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने तब अपने पांच विधायकों को जिताकर बड़ी धमक दिखाई थी। लेकिन, सरकार बनने के बाद जोड़तोड़ हुई तो तेजस्वी यादव की पहल पर राजद ने एआईएमआईएम के पांच में से चार विधायक अपने साथ कर लिए। इस तरह इनकी सदस्यता भी नहीं गई और वह चारों राजद में आसानी से चले भी गए। उसके बाद से विधायक अख्तरुल ईमान अकेले एआईएमआईएम का झंडा उठाए जमे हैं। ओवैसी की पार्टी इस घाव को विधानसभा सत्रों के दौरान नहीं भूली, इसलिए सरकार पर भी मौका-बेमौका हावी रही। ईमान कहते हैं- “विपक्षी एकता के लिए किसी बैठक की जानकारी उनकी पार्टी को नहीं मिली है। बिहार में एआईएमआईएम स्पष्ट रूप से सरकार के खिलाफ है। सत्तासीन दलों ने चोट ही दी है, मरहम कभी नहीं लगाया है।”
पटना में राजनीतिक तापमान चढ़ा, ओवैसी विदेश में
12 जून को जब विपक्षी एकता के लिए पटना में बैठक रखी गई तो कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी का रिस्पांस नहीं मिला। वह विदेश में थे। सामने आया कि विपक्षी एकता की मुहिम चला रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से कांग्रेस के लिए मदद लेनी पड़ी। खैर, राहुल गांधी ने विपक्षी एकता की बैठक के लिए हामी भरी और अब वह 23 जून को पटना आ भी रहे। तैयारी तेज है। इधर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी विदेश में हैं। विपक्षी एकता की बैठक के लिए बुलावा नहीं मिलने से नाराज भी हैं। ओवैसी की पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता तक इस मुद्दे पर बात नहीं कर रहे हैं। प्रदेश प्रवक्ता आदिल हसन ने ‘अमर उजाला’ के सामने जख्म का इजहार करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बहन कुमारी मायावती और एआईएमआईएम प्रमुख की अनदेखी की। अपने साथ रहे दलित नेताओं का अपमान किया। आदिवासियों को तवज्जो नहीं दी। झारखंड में ही सिर्फ आदिवासी नहीं हैं। ऐसे में विपक्षी एकता की बैठक के बारे में कोई बात करना बेकार है।
मायावती को लेकर संशय की स्थिति क्यों है
पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के भाई साधु यादव बिहार में बहुजन समाज पार्टी की कमान संभाले रहते हैं। वह अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सीधे हमलावर होते तो साफ होता कि मायावती ने विपक्षी एकता को लेकर बैठक से दूरी बनाने के स्पष्ट संकेत दिए हैं। लेकिन, साधु सिर्फ तेजस्वी यादव पर बात कर रहे हैं। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती जिस तरह कुछ वर्षों में करीब-दूर होते रहे हैं, आश्चर्यजनक रूप से कभी भी मायावती इस बैठक में आने के लिए राजी हो सकती है। इसलिए, फिलहाल मायावती को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है।
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