बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और जननायक कहे जाने वाले कर्पूरी ठाकुर की बुधवार को 100वीं जयंती मनाई जा रही है। उनकी जयंती से महज 12 घंटे पहले बिहार के पिछड़ों, अतिपिछड़ों और दलितों के बड़े नेता कहे जाने वाले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की गई। यह घोषणा उस वक्त हुई जब बिहार में कर्पूरी ठाकुर की जयंती को मनाने को लेकर जदयू राजद और भारतीय जनता पार्टी के बीच में झगड़ा शुरू हुआ। सियासी गलियारों में अब चर्चा इसी बात की है कि क्या कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा से भारतीय जनता पार्टी को बिहार में नीतीश कुमार के जातिगत जनगणना के दांव पर बड़ा फायदा मिलने वाला है। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर को चुनावी साल में भारत रत्न की घोषणा सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि देश के पिछड़ों और अतिपिछड़ों में सियासी तौर पर भाजपा को सियासी फायदा पहुंचा सकती है।
बिहार में एक बार फिर से सियासत उबाल मार रही है। इस सियासत में कर्पूरी ठाकुर को दिए गए भारत रत्न की घोषणा भी शामिल है। सियासी जानकारों का कहना है कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के फैसले पर भाजपा ने सियासी तौर पर हलचल मचा ही दी है। वरिष्ठ पत्रकार प्रभात कुमार कहते हैं कि बहुत लंबे समय से कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की मांग की जा रही थी। अब जब बिहार के जननायक कहे जाने वाले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा हुई है, तो बिहार में सियासी उबाल आना ही है। प्रभात कहते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना के आंकड़ों को जारी कर जो सियासी हलचल पैदा की थी, एक तरह से कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा से भाजपा को बड़ी संजीवनी मिली है।
वह कहते हैं कि सियासी तौर पर भाजपा इसका कितना फायदा उठा पाती है, यह तो चुनावी परिणाम बताएंगे। लेकिन यह फैसला पार्टी को पिछड़ों और अतिपिछड़ों में सियासी तौर पर फायदा पहुंचा सकता है। वरिष्ठ पत्रकार अरुण झा कहते हैं कि भाजपा ने पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों की सियासत को समझते हुए कई सधे हुए दांव चले हैं। बिहार में जब जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए गए तब भी भाजपा ने इसका कोई विरोध नहीं किया था। उसके बाद कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर बिहार में बड़े कार्यक्रम करने की तैयारी भी की। अरुण कहते हैं कि सियासत की समझ रखने वाले इस बात को इनकार नहीं कर सकते कि कर्पूरी ठाकुर का बिहार की राजनीति और सामाजिक उत्थान में बहुत बड़ा योगदान है। खासतौर से पिछड़ों और अतिपिछड़ों और दलितों के बड़े जननायक के तौर पर कर्पूरी ठाकुर पहचाने जाते हैं। ऐसे में उनको भारत रत्न दिया जाना एक तरह से भारतीय जनता पार्टी को सियासी फायदे के तौर पर देखा जा रहा है।
बिहार की राजधानी पटना में बुधवार को कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर एक कार्यक्रम होना तय हुआ। इस कार्यक्रम के स्थल को लेकर जदयू राजद के साथ भाजपा की तकरार हो गई। भाजपा ने पटना में कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाए जाने के लिए आयोजित स्थल के रद्द होने पर विरोध करना शुरू किया। सियासी जानकारों का कहना है कि पटना में कर्पूरी ठाकुर की आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रम की होड़ बताती है कि बिहार में कर्पूरी ठाकुर का नाम ही सियासी रूप से कितना मजबूत है। ऐसे में उनकी जयंती से 12 घंटे पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा से सियासी तौर पर तूफान तो आना ही है।
वहीं कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। अब इसके क्रेडिट को लेकर भी सियासी होड़ मच गई है। जदयू के प्रवक्ता राजेश रंजन कहते हैं कि नीतीश कुमार लगातार कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग कर रहे थे। आखिर 10 वर्षों का कार्यकाल पूरा होने वाली मोदी सरकार ने इस मांग को स्वीकार किया। राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने 9 साल तक उनको क्यों नहीं याद किया। अब जब चुनावी साल आया है, तो कर्पूरी ठाकुर उनको याद आ रहे हैं। तिवारी कहते हैं कि लालू यादव लगातार जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग करते आए हैं। जबकि बिहार में भाजपा के नेता सुशील मोदी ने लाल यादव पर हमला बोलते हुए कहा कि जब वह केंद्र की सरकार में थे, तो उन्होंने क्यों नहीं कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग की। उस वक्त केंद्र से गुजारिश करके वर्षों से चली आ रही कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग पूरी की जा सकती थी।