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सुप्रीम कोर्ट
– फोटो : सोशल मीडिया
विस्तार
बिहार में चल रही जाति आधारित जन-गणना पर रोक लगवाने के लिए पहले याचिकाकर्ताओं को जल्दी थी, लेकिन अब पटना हाईकोर्ट के स्टे ऑर्डर के अगले ही दिन राज्य सरकार ने अपील दायर की है कि इसकी सुनवाई कर फैसला जल्दी दे दें। गुरुवार को हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में राज्य सरकार की इस दलील को नहीं माना था कि यह जाति आधारित गणना ही है, पूरी तरह से जनगणना नहीं। ऐसे कई आधारों पर कोर्ट ने जाति जन-गणना को तत्काल रोकने का आदेश दिया था और अगली तारीख 03 जुलाई दी थी।
15 दिनों के अंदर फैसला चाहती है राज्य सरकार
राज्य सरकार का मानना है कि अगर पटना हाईकोर्ट उसे अंतिम रूप से राहत नहीं देगा तो वह सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगी। अंतरिम आदेश सरकार के खिलाफ है, इसलिए सरकार को हाईकोर्ट से उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है। दो महीने में पूरी प्रक्रिया बैठ जाएगी, क्योंकि रोक का आदेश आते ही सरकार ने प्रक्रिया जस की तस रोक दी है। 19 मई के बाद 18 जून तक पटना हाईकोर्ट में गरमी छुट्टी रहेगी। इसे देखते हुए सरकार ने जल्द सुनवाई की अपील की है, ताकि गरमी छुट्टी के पहले बचे 15 दिनों के अंदर फैसला आ जाए तो वह आगे की प्रक्रिया कर सके।
लालू प्रसाद बोले- BJP की कुटिल चाल
पटना हाईकोर्ट के रोक के बाद राजद सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि जातिगत जनगणना बहुसंख्यक जनता की मांग है और यह हो कर रहेगा। BJP बहुसंख्यक पिछड़ों की गणना से डरती क्यों है? जो जातीय गणना का विरोधी है वह समता, मानवता, समानता का विरोधी एवं ऊंच-नीच, गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ेपन, सामाजिक व आर्थिक भेदभाव का समर्थक है। देश की जनता जातिगत जनगणना पर BJP की कुटिल चाल और चालाकी को समझ चुकी है।
उच्च न्यायालय का निर्णय बिहार के हित में है
भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूढ़ी ने कहा कि यह बात में पिछले साल भर से कह रहा था कि यह अनियमित है। यह पूर्णत: राजनीति से प्रेरित है। यह सर्वे सेंसस का रूप है। सेंसस करने अधिकार केवल केंद्र को है। पटना उच्च न्यायालय का निर्णय बिहार के हित में है क्योंकि इससे जो जातीय तनाव उत्पन्न हो रहा था वह रूक गया।
जानिए, क्या दलीलें है याचिकाकर्ताओं की
- “बिहार सरकार जातीय गणना के नाम पर एक-एक जन की गणना कर रही है, इसलिए यह जनगणना है। जनगणना का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। यह राज्य सूची या संवर्ती सूची में नहीं है। सर्वे बताकर हर आदमी को गिनना जनगणना है और यह राज्य सरकार की ओर से कराना असंवैधानिक है।”
- “राज्य सरकार एक-एक आदमी को गिनवा रही है और इसमें कई जातियों का नाम गायब है, जबकि कई जातियों का नाम बदल दिया गया है। ऐसे में जिस आदमी की गणना नहीं होगी, उसका मौलिक अधिकार छिन सकता है। आधार समेत सारे दस्तावेज रहने पर भी किसी का मौलिक अधिकार छीनने का हक राज्य सरकार को नहीं है।
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