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आनंद मोहन की बढ़ी मुश्किलें।
– फोटो : अमर उजाला डिजिटल
विस्तार
आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के दोषी पूर्व लोकसभा सांसद आनंद मोहन को सुप्रीम कोर्ट ने जोर का झटका दिया है। कोर्ट ने पासपोर्ट जमा करने के साथ साथ हर पखवाड़े स्थानीय थाना में अपनी उपस्थिति दर्ज करने को कहा। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र को मोहन को दी गई छूट पर अपना हलफनामा दाखिल करने का आखिरी मौका दिया, जो 1994 के तत्कालीन गोपालगंज जिला मजिस्ट्रेट जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था। पीठ ने आदेश जारी करते हुए कहा कि “प्रतिवादी (आनंद मोहन) को अपना पासपोर्ट तुरंत स्थानीय पुलिस स्टेशन में जमा करना चाहिए और हर पखवाड़े पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज करनी चाहिए।”
आनंद मोहन के वकील ने पुनर्विचार करने का किया आग्रह
पीठ ने कहा कि वह मामले को 27 फरवरी को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर रही है और बहस पूरी करने के लिए दोनों पक्षों को अधिकतम 60 मिनट का समय देगी। आनंद मोहन के वकील ने पीठ से पासपोर्ट जमा करने और स्थानीय पुलिस स्टेशन में उपस्थिति दर्ज कराने के निर्देश पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया। लेकिन पीठ ने कहा कि उसने प्रतिवादी (मोहन) की अन्य मामलों में संलिप्तता को देखते हुए यह आदेश पारित किया है।
क्या है आनंद मोहन के जेल जाने की कहानी
तेलंगाना के रहने वाले तत्कालीन गोपालगंज जिला मजिस्ट्रेट जी कृष्णैया को 1994 में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। मुजफ्फरपुर में गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के जुलूस जा रहा था और वह अपने वाहन ने उस जुलूस से आगे निकलने की कोशिश कर रहे थे। उस समय आनंद मोहन विधायक थे और वह उस जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे। आईएएस जी कृष्णैया की गाड़ी आगे निकलने के लिए लगातार हॉर्न बजा रही थी। आनंद मोहन पर आरोप था कि उन्होंने भीड़ को जी कृष्णैया की हत्या के लिए उकसाया था और इसी का नतीजा था कि भीड़ ने जी कृष्णैया को गाड़ी से खींचकर पीटते पीटते जान ले ली।
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