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राजगीर से पटना पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
पटना में 23 जून को जैसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मीडिया के सामने नहीं आए और निकल गए थे, ठीक उसी तरह 17-18 जून की बैठक के बाद बेंगलुरू से बिहार के सीएम नीतीश कुमार निकल आए थे। उन्हें बुधवार को सुबह 11 बजे राजगीर जाना था, लेकिन वह मंगलवार शाम को ही इस नाम पर चार्टर्ड प्लेन से पटना लौट आए। पटना एयरपोर्ट पर मीडिया से बात किए बगैर आवास निकल गए। पटना की तरह ही बेंगलुरु में भी विपक्षी एकता के लिए हुई बैठक के बाद संयोजक के रूप में उनका नाम घोषित नहीं हुआ, जबकि 23 जून को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें बार-बार इस प्रयास का सफल संयोजक कहा था। मंगलवार को विपक्षी एकता का नया नाम भी राष्ट्रीय जनता दल ने घोषित किया। ऐसे में नीतीश की नाराजगी की बातें फिज़ा में हैं। इसपर उन्होंने राजगीर में थोड़ी-सी बात की और पटना लौटकर विस्तार से बातें की। विपक्षी एकता के सवाल पर कम, बाकी पर ज्यादा।
विपक्षी एकता के संयोजक या संयोजकों में एक…
हमारा कोई निजी चॉइस-वॉइस इसपर नहीं है। हमारा पर्सनल कुछ नहीं है। बस, हम देश के हित की बात कर रहे हैं। वह सब कोई बात नहीं है।
विपक्षी एकता की ताकत बढ़ने पर…
जब सही समय आएगा तो इसकी भी संभावना है कि कुछ और भी लोग हमारे साथ इसमें शामिल हों। उन लोगों का अभी नाम नहीं लेंगे हम, नहीं तो पता चला कि क्या-क्या कर दिया जाएगा!
एनडीए की मीटिंग के मुद्दे पर…
एनडीए की मीटिंग का क्या मतलब! एनडीए था पहले? श्रद्धेय अटल जी के टाइम में 1999 में यह बना। इसके बाद यह लोग कभी एनडीए कहते थे? पहले एनडीए की सारी पार्टी की मीटिंग होती थी। उनके बाद कभी हुआ है? इनके साथ भी थे तो अभी पांच साल। अभी चूंकि हम लोग मीटिंग करवा दिए, इसलिए इनलोगों को लगा कि यह लोग मीटिंग कर लिया। उनकी बैठक में जिन लोगों का नाम आया, किसी को जानते हैं? कौन-सी पार्टी है? इनका तो ऐसे ही है।
दोबारा महागठबंधन के साथ जाने पर…
यह लोग भूल गए हैं क्या? 2015 में क्या हुआ था! तब एक साथ लड़कर नहीं आए थे क्या? फिर पीछे पड़कर हमको यही लोग साथ लाए।
कुशवाहा, मांझी और आरसीपी सिंह को लेकर..
जो लोग मेरे पीछे पड़ कर आए। जनता दल से लाए, भाग गया फिर। फिर मनाए, फिर भाग गया। जिसको हम अपनी जगह पर मुख्यमंत्री बनाए, उसका आज क्या हुआ? एक आईएएस अफसर था। उसको कहां से कहां लाए। क्या हुआ? अब क्या कीजिएगा!
बापू और अटल का नाम फिर लिया…
यह लोग देश के इतिहास को ही बदल देंगे। आजादी की लड़ाई से कोई मतलब नहीं इन्हें। यह लोग सब कुछ खत्म कर देंगे। एक बार भी बापू का नाम लेता है यह लोग? श्रद्धेय अटल जी के साथ रहे। कितना बड़ा काम होता था! अब अटल जी का भी ये लोग नाम लेता है?
सुशील मोदी की बयानबाजी पर टिप्पणी…
क्या करें बेचारे सुशील मोदी! हमें इसी बात का दुख है कि हमने उन्हें डिप्टी सीएम बनाया। हम अलग हो गए तो वह अपना बेचारा कोशिश कर रहे हैं। अब रोज-रोज बोल रहे ताकि आगे मौका मिले। हम कभी कुछ बोले हैं क्या? वह तो अंड-बंड बोलेंगे ही। अंड-बंड बोलने से पार्टी में कुछ जगह मिल जाएगी।
अपने पुराने साथी मांझी को लेकर…
हम किसी को निकाल दिए तो जान कर। कहे थे कि विलय कर लीजिए या बाहर जाइए। वह रहता तो यहां जो भी होता तो सब खबर वहां दे देता। हमने तो कह दिया था कि या तो मर्ज कीजिए नहीं तो जाइए। दो दिन का टाइम दिया था।
मीडिया पर भाजपा सरकार का प्रभाव…
सारे मीडिया पर उनका दबदबा है। हम लोगों की बात थोड़ी चलेगी, बाकी उन्हीं का चलेगा। देख लीजिए 2024 या उससे पहले, जब भी चुनाव होगा तो हम लोग लगे हुए हैं कि वह हट जाएं तो आप लोग भी स्वतंत्र हो जाइएगा। मीडिया के लोग फिर सही बात की चर्चा ही करेंगे। उससे देश को फायदा होगा। पहले कितना बढ़िया होता था मीडिया। पहले के समय का मीडिया देखिए और अब का देखिए! अब तो कुछ रहा नहीं।
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