Border Dispute: क्या है कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद, मराठी अस्मिता की 66 साल पुरानी लड़ाई में अब क्या होगा?

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महाराष्ट्र कर्नाटक सीमा विवाद

महाराष्ट्र कर्नाटक सीमा विवाद
– फोटो : Amar Ujala

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कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच चल रहा सीमा विवाद इन दिनों सुर्खियों में हैं। सीमाओं पर प्रदर्शन हो रहे हैं। बीते दिनों बस व ट्रकों पर पथराव जैसी उग्रता भी नजर आई थी। इन सबके बीच 27 दिसंबर को महाराष्ट्र विधानसभा के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया गया। इस प्रस्ताव में विवाद के समाधान के लिए कानून लड़ाई लड़ने का समर्थन किया गया है। इससे पहले पिछले हफ्ते ही कर्नाटक विधानसभा में भी इसी तरह का प्रस्ताव पास हो चुका है। कर्नाटक विधानसभा द्वारा पास प्रस्ताव में राज्य के हितों की रक्षा करने का संकल्प लिया गया था। सर्वसम्मति से पारित किए गए प्रस्ताव में महाराष्ट्र द्वारा निर्मित सीमा विवाद की निंदा की गई थी। 
आखिर दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद क्या है? यह विवाद कितना पुराना है? अब तक इस विवाद में क्या-क्या हो चुका है? अभी यह क्यों सुर्खियों में है? इसे सुलझाने के लिए क्या-क्या हो चुका है? इस विवाद को सुलझाने के क्या रास्ते हो सकते हैं? आइये जानते हैं… 
दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद क्या है?
यह सीमा विवाद कर्नाटक के बेलागवी (बेलगाम), उत्तर कन्नड़ा, बिदार और गुलबर्गा जिलों के 814 गांवों से जुड़ा है। इन गांवों में मराठी भाषी परिवार रहते हैं। 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत जब राज्यों की सीमा का निर्धारण हुआ तो ये गांव उस वक्त के मैसूर (वर्तमान कर्नाटक) राज्य का हिस्सा बन गए। महाराष्ट्र इन गांवों पर अपना दावा करता है। 
यह विवाद कितना पुराना है?
बॉम्बे प्रेसिडेंसी में कर्नाटक के विजयपुरा, बेलागवी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ा जिले आते थे। 1948 में बेलगाम म्युनिसिपालिटी ने जिले को महाराष्ट्र में शामिल करने की मांग की थी। लेकिन, स्टेट्स रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 1956 के तहत बॉम्बे प्रेसिडेंसी में शामिल रहे बेलगाम और उसकी 10 तालुका को मैसूर स्टेट (1973 में कर्नाटक नाम मिला) में शामिल किया गया। दलील दी गई कि इन जगहों पर 50% से अधिक कन्नड़भाषी थे, पर विरोधी ऐसा नहीं मानते। उनका दावा है कि करीब 7,000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इन इलाकों में मराठी भाषी लोगों की बहुलता है ऐसे में ये इलाके महाराष्ट्र का हिस्सा हैं।  
अब तक इस विवाद में क्या-क्या हो चुका है? 
22 मई, 1966 को सेनापति बापट और उनके साथियों ने मुख्यमंत्री आवास के बाहर भूख हड़ताल की। इसके बाद सीमा विवाद के इस मुद्दे को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने लाया गया। इसके बाद इंदिरा सरकार ने अक्टूबर 1966 में विवाद के निपटारे के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में महाजन आयोग का गठन किया था। इस आयोग को महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल के बीच जारी सीमा विवाद के निपटारे के लिए बनाया गया था। इस आयोग ने कर्नाटक के 264 गांवों को महाराष्ट्र में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया था। इसके साथ ही बेलगाम और महाराष्ट्र के 247 गांवों को कर्नाटक में रखने की बात भी कही। महाराष्ट्र ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया। 2004 में महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। 
महाजन आयोग की रिपोर्ट पर कर्नाटक का क्या रुख है?
कर्नाटक विधानसभा पिछले हफ्ते पेश प्रस्ताव में कहा गया है कि ‘जब भाषाई आधार पर राज्यों का गठन किया गया था, उसी दिन सीमाएं भी निर्धारित कर दी गई थीं। जहां तक कर्नाटक का सवाल है, महाराष्ट्र के साथ उसका कोई सीमा विवाद नहीं है और जस्टिस महाजन समिति की सिफारिशें अंतिम हैं।’ 
 
अभी यह मामला क्यों सुर्खियों में है?
2004 से सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पेंडिंग है। तब से केंद्र ने महाजन आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अक्सर महाराष्ट्र के दावे वाले इलाकों के कर्नाटक ऑक्युपाइड महाराष्ट्र बताते रहे हैं। इस पर कर्नाटक में हिंसक प्रदर्शन भी हो चुके हैं। बेलगाम का मसला महाराष्ट्र की सभी पार्टियों के चुनावी एजेंडे में रहता है। छह दशक से महाराष्ट्र विधानसभा और परिषद के संयुक्त सत्र में गवर्नर के अभिभाषण में सीमा विवाद का जिक्र होता है। 
ताजा मामले की बात करें तो पिछले कुछ समय से कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई कह रहे हैं कि महाराष्ट्र के कुछ गांवों को कर्नाटक में जोड़ा जाएगा। वहीं, दूसरी ओर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि उनकी सरकार कर्नाटक के 865 गांवों के मराठी भाषी लोगों के साथ है और इन गांवों को महाराष्ट्र में शामिल कराया जाएगा। बीते करीब एक महीने से दोनों राज्यों के नेताओं की ओर से बयानबाजी जारी है। दिसंबर की शुरुआत में दोनों राज्यों की सीमा पर कन्नड़ रक्षक वेदिका नाम के एक संगठन ने महाराष्ट्र से आने वाली ट्रेनों को नुकसान पहुंचाया। बेंगलुरु हाइवे से गुजरने वाली गाड़ियों के साथ ही ट्रेनों पर पथराव किया गया है और शीशे तोड़े गए। इसके बाद दोनों राज्यों की विधानसभाओं से इसे लेकर प्रस्ताव पारित किए गए। 
इस विवाद में आगे क्या हो सकता है? 
राज्यों के बीच के सीमा विवाद का निपटारा दोनों राज्यों के सहयोग से ही हो सकता है। इसमें केंद्र की भूमिका अहम होती है। जो एक सूत्रधार या तटस्थ मध्यस्थ की भूमिका निभाता है। अगर दोनों राज्यों में सहमति बनती है तो केंद्र सरकार ससंद में राज्यों की सीमाओं को बदलने के लिए कानून ला सकती है। जैसा- बिहार-उत्तर प्रदेश (सीमाओं का परिवर्तन) अधिनियम 1968 और हरियाणा-उत्तर प्रदेश (सीमाओं का परिवर्तन) अधिनियम 1979 में हो चुका है।  
 
जहां तक महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद की बात है तो इसे लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से छह सदस्यों की एक कमेटी बनाने  के लिए कहा है। जिसमें, दोनों राज्य सरकारों के तीन-तीन मंत्री शामिल हों। ये कमेटी सीमा विवाद से जुड़े सभी मुद्दों का निपटारा करेगी।  
इसके अलावा अन्य रास्तों की बात करें तो, संविधान का अनुच्छेद 263 में राष्ट्रपति को राज्यों के बीच विवादों के समाधान के लिए अंतर-राज्यीय परिषद गठित करने की शक्ति देता है। यह परिषद राज्यों और केंद्र के बीच चर्चा के लिए एक मंच के रूप में काम करता है। 1988 में, सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया कि परिषद को एक स्थायी निकाय के रूप में अस्तित्व में रहना चाहिए। 1990 में यह तत्कालीन राष्ट्रपति के आदेश से अस्तित्व में आया।
2021 में, केंद्र ने अंतर-राज्य परिषद का पुनर्गठन किया। मौजूदा परिषद में गृह मंत्री अमित शाह अध्यक्ष हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और महाराष्ट्र, यूपी और गुजरात के मुख्यमंत्री स्थायी समिति के कुछ अन्य सदस्य हैं। इसके साथ ही कोर्ट के जरिए भी सीमा विवाद का एक रास्ता हो सकता है। 2004 से मामला सुप्रीम कोर्ट में है। 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में कहा कि सिर्फ भाषा के आधार पर सीमा का बंटवारा नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के इस टिप्पणी की वजह से कर्नाटक की दलीलें मजबूत हैं। हालांकि, महाराष्ट्र का कहना है कि इन इलाकों में रहने वाले लोगों की इच्छा भी महाराष्ट्र के साथ जाने की है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के सामने जनमत जानने की चुनौती होगी।

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कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच चल रहा सीमा विवाद इन दिनों सुर्खियों में हैं। सीमाओं पर प्रदर्शन हो रहे हैं। बीते दिनों बस व ट्रकों पर पथराव जैसी उग्रता भी नजर आई थी। इन सबके बीच 27 दिसंबर को महाराष्ट्र विधानसभा के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया गया। इस प्रस्ताव में विवाद के समाधान के लिए कानून लड़ाई लड़ने का समर्थन किया गया है। इससे पहले पिछले हफ्ते ही कर्नाटक विधानसभा में भी इसी तरह का प्रस्ताव पास हो चुका है। कर्नाटक विधानसभा द्वारा पास प्रस्ताव में राज्य के हितों की रक्षा करने का संकल्प लिया गया था। सर्वसम्मति से पारित किए गए प्रस्ताव में महाराष्ट्र द्वारा निर्मित सीमा विवाद की निंदा की गई थी। 

आखिर दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद क्या है? यह विवाद कितना पुराना है? अब तक इस विवाद में क्या-क्या हो चुका है? अभी यह क्यों सुर्खियों में है? इसे सुलझाने के लिए क्या-क्या हो चुका है? इस विवाद को सुलझाने के क्या रास्ते हो सकते हैं? आइये जानते हैं… 



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