Chandrayaan-3 Landing: चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों उतर रहा चंद्रयान-3 ? ये है बड़ी वजह

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Chandrayaan-3 Landing Update : भारत का मून एक्स्प्लोरेशन मिशन चंद्रयान-3 इतिहास रचने से बस कुछ कदम दूर है. इसरो की ओर से चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग की तैयारी पूरी हो चुकी है. आज शाम 6:04 बजे इसरो लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान से लैस लैंडर मॉड्यूल को चांद पर उतारेगा. थोड़ी ही देर में लैंडर विक्रम चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग कराने वाला भारत पहला देश बन सकता है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (संक्षेप में इसरो) के मून एक्स्प्लोरेशन मिशन चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के बीच लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर हमारा चंद्रयान दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों उतर रहा है ? चंद्र मिशनों के लिए दक्षिणी ध्रुव ही वैज्ञानिकों पसंदीदा क्यों है ? चंद्रमा के दक्षिणी और उत्तरी ध्रुवों के तापमान में अंतर क्या है?

चंद्रयान-3 दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों उतर रहा है ?

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्र मिशन को उतारना पिछले कुछ समय से दुनियाभर के अंतरिक्ष एजेंसियों की दिलचस्पी बना हुआ है. अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा पर इतने गहरे गड्ढे हैं, जहां अरबों वर्षों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है. इन क्षेत्रों में तापमान आश्चर्यजनक रूप से माइनस 248 डिग्री सेल्सियस ( माइनस 414 फारेनहाइट) तक गिर जाता है. यहां चंद्रमा की सतह को गर्म करने वाला कोई वातावरण नहीं है. चंद्रमा की इस पूरी तरह अज्ञात दुनिया में किसी भी इंसान ने कदम नहीं रखा है. नासा की मानें, तो चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव रहस्य, विज्ञान और उत्सुकता से भरा है.

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की स्पेस रेस खास क्यों है ?

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 14 वर्षों से चंद्रमा का परिक्रमा कर रहे नासा के अंतरिक्ष यान लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर की ओर से इकट्ठा किये गए डेटा से पता चलता है कि स्थायी रूप से छाया वाले कुछ बड़े गड्ढों में वॉटर आइस (पानी की बर्फ) मौजूद है, जो संभावित रूप से जीवन को बनाए रख सकती है. ऐसे में इसमें कोई अाश्चर्य की बात नहीं है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने के लिए एक तरह की स्पेस रेस (अंतरिक्ष होड़) चल रही है.

जापान के साथ एक जॉइंट लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन मिशन योजना

चंद्रयान-3 का विक्रम रोवर चंद्रमा के जिस जगह पर लैंड कर रहा है, वह स्थान भूमध्य रेखा के आसपास उस स्थान से बहुत दूर है, जहां अमेरिकी मिशन अपोलो लैंड हुआ था. इसरो से पहले रूस का चंद्र मिशन लूना-25 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने वाला था, लेकिन 20 अगस्त को वह चंद्रमा पर हादसे का शिकार हो गया और मिशन फेल हो गया. भारत की 2026 तक चंद्रमा के अंधेरे वाले क्षेत्रों का पता लगाने के लिए जापान के साथ एक जॉइंट लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन (Lupex) मिशन की भी योजना है. चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव वैज्ञानिकों को खोज के लिए इतना क्यों आकर्षित कर रहा है? वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी बड़ी वजह ‘पानी’ है.

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