Corbett Tiger Reserve: कॉर्बेट के बफर जोन में निर्माण पर एनटीसीए का नोटिस, वन विभाग से जवाब तलब

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– फोटो : अमर उजाला फाइल फोटो

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कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बफर जोन के आसपास बनाए जा रहे तमाम रिजॉर्ट और अन्य व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ने पर उत्तराखंड वन विभाग एक बार फिर सवालों के घेरे में है। इस संबंध में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की ओर से वन विभाग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है।

एनटीसीए के सहायक वन महानिरीक्षक हेमंत सिंह की ओर से उत्तराखंड वन विभाग को यह नोटिस सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल की एक शिकायत के बाद भेजा गया है। इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तराखंड सरकार ने राजनीतिक संरक्षण प्राप्त बड़े व्यवसायियों को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों में शिथिलता देने जा रही है।

 

सरकार की ओर से ईको सेंसिटिव जोन की पॉलिसी का जो ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है, उसमें एक किमी की दूरी कॉर्बेट टाइगर रिजर्व क्षेत्र के कोर एरिया से नापी गई है, जबकि एनटीसीए की गाइड लाइन के हिसाब से यह दूरी बफर जोन से नापी जानी चाहिए। अमर उजाला से बातचीत में आरोप लगाया कि ऐसा करके उत्तराखंड सरकार प्रभावशाली लोगों को फायदा पहुंचाना चाहती है।

कहा कि ऊंची पहुंच रखने वाले कई व्यवसायियों और नौकरशाहों को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों में शिथिलता बरती जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि वहां बड़े व्यवसायी लगातार गरीबों की जमीन खरीद कर उसमें बड़े-बड़े निर्माण खड़े कर रहे हैं। इसके पीछे राजनीतिक लोगों, ब्यूरोक्रेट्स और व्यवसायियों की एक बहुत बड़ी लॉबी काम कर रही है।

वन्यजीवों का जीवन खतरे में डाल रहे
बताते चलें कि रिजर्व के आसपास के क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ने के बाद से वन्यजीव प्रेमी लगातार विरोध कर रहे हैं। मामले में पहले भी शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं। वन्यजीव प्रेमियों का मानना है कि कुछ लोग अधिक मुनाफे के चक्कर में वन्यजीवों का जीवन खतरे में डाल रहे हैं। 

ईको सेंसिटिव जोन एरिया को एनटीसीए की गाइडलाइन के अनुसार ही तैयार किया जा रहा है। एनटीसीए की ओर से भेजे गए नोटिस का परीक्षण के बाद जवाब दिया जाएगा। बफर जोन वाइल्ड लाइफ एक्ट में एक विधिक शब्द है। उसकी परिभाषा प्रख्यापित है। कॉर्बेट के बफर जोन में कोई भी रिजॉर्ट या निजी संपत्ति नहीं है। जो भी वहां पर रिजॉर्ट या भवन बने हैं, वह निजी भूमि पर बने हैं। वह बफर जोन का हिस्सा नहीं हैं।  – डॉ. समीर सिन्हा, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक 

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एनटीसीए का जो भी निर्णय होगा, उसका परीक्षण कराया जाएगा। वन क्षेत्र की परिधि में किसी भी तरह के अतिक्रमण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने बफर जोन के एक किमी के दायरे में किसी भी प्रकार के निर्माण पर रोक लगाई है। इससे उत्तराखंड सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा। मसले पर केंद्र सरकार एसएलपी दायर कर चुकी है, जबकि राज्य सरकार भी एसएलपी दाखिल करने जा रही है। – सुबोध उनियाल, वन मंत्री

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कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बफर जोन के आसपास बनाए जा रहे तमाम रिजॉर्ट और अन्य व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ने पर उत्तराखंड वन विभाग एक बार फिर सवालों के घेरे में है। इस संबंध में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की ओर से वन विभाग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है।


एनटीसीए के सहायक वन महानिरीक्षक हेमंत सिंह की ओर से उत्तराखंड वन विभाग को यह नोटिस सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल की एक शिकायत के बाद भेजा गया है। इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तराखंड सरकार ने राजनीतिक संरक्षण प्राप्त बड़े व्यवसायियों को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों में शिथिलता देने जा रही है।

 

सरकार की ओर से ईको सेंसिटिव जोन की पॉलिसी का जो ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है, उसमें एक किमी की दूरी कॉर्बेट टाइगर रिजर्व क्षेत्र के कोर एरिया से नापी गई है, जबकि एनटीसीए की गाइड लाइन के हिसाब से यह दूरी बफर जोन से नापी जानी चाहिए। अमर उजाला से बातचीत में आरोप लगाया कि ऐसा करके उत्तराखंड सरकार प्रभावशाली लोगों को फायदा पहुंचाना चाहती है।


कहा कि ऊंची पहुंच रखने वाले कई व्यवसायियों और नौकरशाहों को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों में शिथिलता बरती जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि वहां बड़े व्यवसायी लगातार गरीबों की जमीन खरीद कर उसमें बड़े-बड़े निर्माण खड़े कर रहे हैं। इसके पीछे राजनीतिक लोगों, ब्यूरोक्रेट्स और व्यवसायियों की एक बहुत बड़ी लॉबी काम कर रही है।



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