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दिल्ली उच्च न्यायालय
– फोटो : अमर उजाला
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उच्च न्यायालय ने नाबालिग के अपहरण और दुष्कर्म के आरोपी की सजा बरकरार रखते हुए पीड़ितों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव पर गहरी चिंता व्यक्त की। अदालत ने कहा कि ये घटनाएं न केवल महिलाओं को शैक्षिक अवसरों से वंचित करती हैं बल्कि इसके परिणामस्वरूप उन्हें जीवन भर मनोवैज्ञानिक आघात भी झेलना पड़ता है।
इस मामले में आईपीसी की धारा 363, 376 (2) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि पीड़ितों को अक्सर यह सोचकर गुमराह किया जाता है कि वे वैवाहिक संबंध में प्रवेश कर रहे हैं, हमलावर पीड़ितों को मजबूर करने के लिए यौन उत्पीड़न को वैवाहिक शारीरिक संबंध के रूप में पेश करते हैं। इसके दुष्परिणाम व्यक्तिगत पीड़ितों से कहीं आगे तक बढ़ते हैं, जिससे इन लड़कियों को उनके साथियों, पढ़ाई और वैध संरक्षकता से दूर कर सामाजिक हलचल पैदा होती है।
पीड़िता के पिता ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसके बाद पुलिस को नाबालिग पीड़िता आरोपी के साथ मिली।अदालत ने पाया कि आरोपी ने पीड़िता का अपहरण कर लिया था, जिसके कारण संबंधित धाराओं के तहत आरोप लगाए गए।
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