Durga Puja : पटना के न्यू स्टूडेंट क्लब में दिखेगा बद्रीनाथ मंदिर का प्रतिरूप, 50 फीट ऊंचा होगा पंडाल

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दुर्गा पूजा में अब कुछ ही दिन बचें हैं. 26 सितंबर को कलश स्थापना होनी हैं ऐसे में पटना शहर की हर पूजा समिति में अपने-अपने प्रतिमा, पंडाल और सजावट को भव्य और आकर्षक प्रस्तुत करने की होड़ सी मची है. ताकि राजधानी के श्रद्धालुओं को वो अपनी आकर्षित कर सके. पंडाल और प्रतिमा के स्वरूप को लेकर पूजा समितियों के सदस्य महीनों पहले से तैयारी में जुट जाते हैं.

क्लब की स्थापना वर्ष 1992 में की गई थी

पटना के न्यू स्टूडेंट क्लब की ओर से जेडी वीमेंस के पास (नंद गांव) दुर्गोत्सव को लेकर तैयारी शुरू हो गयी है. इस पूजा समिति की खास बात यह है कि इसमें पूरे नंद गांव के ग्रामवासियों की भागीदारी होती है. यहां किसी भी प्रकार का निर्णय सामूहिक रूप से लिया जाता है. क्लब की स्थापना वर्ष 1992 में छोटे स्तर पर की गई थी लेकिन धीरे-धीरे इसका स्वरूप बड़ा हो गया है.

50 फीट ऊंचा होगा पंडाल 

इस बार यहां का पंडाल उत्तराखंड के बद्रीनाथ मंदिर की तरह होगा. माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8 वी सदी में बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था. पंडाल की ऊंचाई लगभग 50 फीट और चौड़ाई लगभग 30 फीट होगी. इस इको फ्रेंडली पंडाल का निर्माण निर्माता सुजीत यादव की टीम कर रही है. उम्मीद है कि यहां आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को प्राकृतिक से साक्षात होगा.

बंगाली पद्धति आधारित प्रतिमा का निर्माण

यहां बंगाली पद्धति आधारित प्रतिमा का निर्माण किया जा रहा है. इनमें मां दुर्गा, गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती और कार्तिक शामिल है. प्रतिमा का निर्माण पश्चिम बंगाल के मूर्ति कलाकार बबलू पाल की टीम कर रही है. इस बार प्रतिमा के निर्माण में इको फ्रेंडली कलर का इस्तेमाल किया जायेगा. ताकि विसर्जन के बाद नदी का पानी दूषित न हो इसका ख्याल रखा गया है.

चंदा लोग स्वेच्छा और श्रद्धा से दे जाते हैं

जहां तक सजावट का सवाल है तो इस बार नंद गांव मोड़ से शेखपुरा मोड़ तक बेली रोड पर लाइट की सजावट की जायेगी. इस बार पंडाल, प्रतिमा और सजावट पर लगभग छह से सात लाख रुपये खर्च करने का बजट है. यहां चंदा लोग स्वेच्छा और श्रद्धा से दे जाते हैं. यह परंपरा स्थापना काल से चली आ रही है.

40 से 50 हजार श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं

यहां सप्तमी को हलवा, अष्टमी को खीर, नवमी को खीर और खिचड़ी का प्रसाद वितरण किया जाता है. इस दौरान यहां 40 से 50 हजार श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं. प्रसाद को तैयार करने में यहां की महिलाओं की भागीदारी मुख्य रूप से होती है.

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