Exclusive: गोरखपुर शहर का शोर, सुनने की क्षमता को कर रहा कमजोर

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यह तस्वीर यूनिवर्सिटी चौराहे की है। वाहनों की कतारें उनसे बढ़ता शोर अब शहर में आम हो गया है।

यह तस्वीर यूनिवर्सिटी चौराहे की है। वाहनों की कतारें उनसे बढ़ता शोर अब शहर में आम हो गया है।
– फोटो : अमर उजाला।

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वाहनों आदि की वजह से गोरखपुर शहर में इतना शोर है कि लोगों की सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है। आमतौर पर लोगों की सुनने की क्षमता 25 से 30 डेसीबल होती है, लेकिन बढ़ते ध्वनि प्रदूषण की वजह से लोग तेज सुनने लगे हैं। कई लोगों को 60 से 70 डेसीबल पर सुनाई देने लगा है। यही वजह है कि कम सुनने की शिकायत लेकर 10 से 15 फीसदी मरीज हर दिन नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ के पास पहुंच रहे हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि शहर में बढ़ते शोर की वजह से लोगों की सुनने की क्षमता कम होती जा रही है। शहर के 24 स्थानों पर ध्वनि प्रदूषण यानी शोर अधिक है। मंदिर और अस्पताल वाले स्थानों पर भी ध्वनि प्रदूषण की स्थिति खराब है। इसका असर लोगों की सेहत पर पड़ने लगा है। फिर भी लोग इसे नजरअंदाज कर रहे हैं। यही कारण है कि लोग इतना शोर सुनने के बाद भी ईयरफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉ. आदित्य पाठक बताते हैं कि लोगों की सुनने की क्षमता कम होती जा रही है, जो चिंता का विषय है। ओपीडी में ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। पहले कम सुनने की क्षमता वाले मरीजों की उम्र 55 के पार होती थी। अब 15 से 40 वर्ष तक के लोग इसकी चपेट में आ गए हैं।

डॉ. पाठक बताते हैं कि शुरुआती जांच में जानकारी मिली है कि लोग ईयरफोन का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं। लोग ईयरफोन में 110 से 150 डेसीबल पर गाना सुन रहे हैं। इस कारण धीरे-धीरे कान की कोलिस्टियोटोमा (कान की हड्डी) गल जाती है, जिससे धीरे-धीरे सुनने की क्षमता कम होती जाती है। कई लोगों को हाई साउंड (श, ष, क्ष) भी ठीक से सुनाई नहीं दे रहा है। सभी केस में ईयरफोन का इस्तेमाल प्रमुख वजह रही है। ऐसे लोगों के ईयरफोन की ध्वनि की फ्रीक्वेंसी नापी गई तो 90 से 100 डेसीबल मिली।

 

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